Monday, October 17, 2022

आजमाईश.....दीप्ति शर्मा

आजमाना न था साथी
जीवन की आजमाइश में 
जिंदगी को तौलता तराजू
सूरज बना,

तुम कंधे पर बैठ उसके
थामनें लगे दुनिया
पकड़ने लगे पीलापन
मुट्ठी बंद करते ही अंधेरा हो गया

पीलापन छूटा तो
आजमाया तुमनें
रिश्तों की गहराइयों को
अंधेरा हुआ तो
कंधा छूट गया
परछाई का साथ मिला
अब क्या
सूरज के कंधे की सवारी 
चश्में के लेंस में दिख रही

तुम आजमाते रहे
जिंदगी नाचती रही
उजाला,अंधेरा हुआ
आँखों का चश्मा

जिंदगी की रौशनी ले
डूब गया अंततः ।
-दीप्ति शर्मा
मूल रचना

3 comments:

  1. रिश्तों की उधेड़बुन ऐसी ही होती है, कभी उजास तो कभी अंधकार, प्रेम को भी अहंकार की भेंट चढ़ना पड़ता है

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  2. सुन्दर रचना दीप्ति जी!

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  3. बहुत ही सुन्दर सार्थक भावपूर्ण रचना

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