Wednesday, December 30, 2020

कोई दुःख इतना बड़ा नहीं होता...अकिञ्चन धर्मेन्द्र

कोई दुःख
इतना बड़ा नहीं होता...
जितना
मन ने बढ़ा लिया धीरे-धीरे..;
पानी में पड़े
तेल की बूँद की तरह..!
न ही मन का ख़ालीपन
इतना विस्तृत..;
जिसमें समा जाए-पूरा पहाड़..!
कोई अनुभूति
इतनी गहरी नहीं होती कि
उसके मापन के लिए
असफल हो जाएँ-
सारे निर्धारित मात्रक..!
कोई रुदन
इतना द्रावक नहीं होता कि
बन जाए-
एक नया महासागर..!
कोई व्याकुलता
इतनी विवश नहीं होती कि
भरी दोपहरी भी
अमावस की
अँधेरी-आधी रात लगने लगे..!
न ही कोई सन्तोष
इतना फलदायी कि
बालू निचोड़कर
प्यास बुझायी जाए..!
पागलपन की
निर्मम भावुकता लिए
भटकते-भटकते...
अब तो केवल होंठ ही नहीं..;
जल जाती है-
आत्मा तक भी..!
काश!
हम दूध ही फूँक-फूँककर पिये होते..!
©अकिञ्चन धर्मेन्द्र

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 30 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अति सुंदर रचना

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  3. अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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  4. बहुत सुन्दर

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  5. वाह!!!
    बहुत बड़ी बात....
    सटीक सीख देती लाजवाब रचना।
    सचमुच पागलपन की हद तक भावुकता !!!

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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  7. सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं ।

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  8. बहुत अच्छी रचना

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  9. अद्भुत सृजन।
    नव वर्ष मंगलमय हो, हार्दिक शुभकामनाएं।

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