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देर ना हो जाए
सिगरेट फूंकती लड़की
बदचलन कहलाती
और लड़का मर्द
कहा जाता
दोनों के गुर्दे क्या
अलग अलग ब्रांड के है
लड़की का भूगोल नापतें नापतें
इतिहास पर नजर अटक जाती
उसका कौमार्य ही
उसकी पहचान कहलाती
बड़े अजीब नजारे दुनिया ने दिखाए है
मर्द सुबह का भूला शाम को भी ना आता
फिर भी लड़की पर इल्जाम लग जाता
कैसी पत्नी, रूप में ना फंसा सकी
पति के दिल में ना समा सकी
इल्जाम हर बार आना ही है
बिना गुहार सुने, फैसला सुनाना ही है
तो फिर चोला क्यों हम पहन घूमते रहे
क्यों और कब तक बिना वजह सहे
बस यही से कहानी बदल गईं
आज लड़की हावी हो रही
जितना दबाया सताया था उसे
आज उतना ही वो भारी हो रही
समझ लो कहीं देर ना हो जाएं
आपका लडका भी कहीं
चाय की ट्रे लेकर ना जाए
ओर लड़की उसके
कौमार्य पर सवाल उठाएं
स्वरचित
-नीलम गुप्ता
कविताएं डॉ अंशु के साथ
सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 21 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन
ReplyDeleteसुंदर रचना।
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