खेल तेरी नजरों का मेरे साथ न खेल
उठे मेरी पलकें कत्ले आम न हो जाए
हुनर अगर है तेरे पास बिछाओ जाल
हुस्न के बगैर क्या खाक है तुम्हारे खयाल
सुनो तुम, कीसे उतारोगे कलम से कागज पर
हमें आँखो से पढकर तो बने हो शायर
तुम्हारी सोच की हदों से वाकिफ है
तुम क्या बयाँ करोगे, कायनात है हम
रहने भी दो यारो क्यूँ हाथ जलना जलाना
हुस्न और इश्क़ का याराना है पुराना
-अनामिका
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 20 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteइस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(सीखे हिंदी में)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है आप मेरी रचना भी पढना
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