खाक होती सनम जिन्दगानी देखा।
पास आती कजा भी सुहानी देखा।।
आँख भरती रही रात दिन रोज ही।
पर नहीं आँख में उसके पानी देखा।।
कह दो कोई चला जाये अपने शहर।
होते चर्चा गली में जुबांनी देखा।।
लफ्ज मिलते नहीं दर्द कैसे कहूं।
खाक होती कली की जवानी देखा।।
आये महफिल में कल शाम को वो मेरी।
मैनें उनकी नब्ज में रवानी देखा।।
मच गया शोर जो खत लिखा रात भर।
शर्म से लाल चेहरा नूरानी देखा।।
@प्रीती श्री वास्तव
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteउम्दा/बेहतरीन।
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