Friday, June 14, 2019

सिखाया गया बहना धीरे धीरे ....निधि सक्सेना

बचपन से ही मुझे पढ़ाये गए थे संस्कार
याद कराई गईं मर्यादाएँ
हदों की पहचान कराई गई 
सिखाया गया बहना
धीरे धीरे 
अपने किनारों के बीच
तटों को बचाते हुए..
मन की लहरों को संयमित रख कर 
दायित्व ओढ़ कर बहना था 
आवेग की अनुमति न थी मुझे
अधीर न होना था 
हर हाल शांत रहना था ..

उमड़ना घुमड़ना नहीं था 
धाराएँ नहीं बदलनी थीं 
हर मौसम ख़ुद को संयमित रखना
मुझसे किनारे नहीं टूटने थे
मुझसे भूखंड नहीं टूटने थे 
मुझसे भूतल नहीं टूटने थे

कि मैं तो टूट कर प्रेम भी न कर पाई..
-निधि सक्सेना

5 comments:

  1. अति सुंदर पोस्ट

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15 -06-2019) को "पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक- 3367) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...

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