Tuesday, February 26, 2019

कौन पथ भूले, कि आए......पण्डित माखन लाल चतुर्वेदी

कौन पथ भूले, कि आये !
स्नेह मुझसे दूर रहकर
कौनसे वरदान पाये?

यह किरन-वेला मिलन-वेला
बनी अभिशाप होकर,
और जागा जग, सुला
अस्तित्व अपना पाप होकर;
छलक ही उट्ठे, विशाल !
न उर-सदन में तुम समाये।

उठ उसाँसों ने, सजन,
अभिमानिनी बन गीत गाये,
फूल कब के सूख बीते,
शूल थे मैंने बिछाये।

शूल के अमरत्व पर
बलि फूल कर मैंने चढ़ाये,
तब न आये थे मनाये-
कौन पथ भूले, कि आये?
- पण्डित माखन लाल चतुर्वेदी

6 comments:

  1. जज़्बए इश्क़ सलामत है तो इंशाअल्लाह,
    कच्चे धागे में चले आएँगे, सरकार बंधे.

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना

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  3. वाह्ह्ह ¡
    बहुत सुंदर।

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  4. बेहतरीन रचना
    सादर

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