Saturday, February 9, 2019

इश्क का फलसफा ढूँढ़ने चले है..... श्वेता सिन्हा

लिखकर तहरीरें  खत में तेरा पता ढूँढ़ने चले है
कभी तो  तुमसे जा मिले वो रास्ता ढ़ूँढ़ने चले है

सफर का सिलसिला बिन मंजिलों का हो गया
तुम नही हो ज़िदगी जिसमें  वास्ता ढूँढ़ने चले है

चीखती है खामोशियाँ तन्हाई में तेरी सदाएँ है
जाने कब खत्म हो दर्द की  इंतिहा ढूँढ़ने चले है

बेरूखी की साज़ पर प्रेम धुन बज नही सकती
चोट खाकर इश्क का फलसफा ढूँढ़ने चले है
-श्वेता सिन्हा

11 comments:

  1. बेरूखी की साज़ पर प्रेम धुन बज नही सकती
    चोट खाकर इश्क का फलसफा ढूँढ़ने चले है.....बहुत खूब.....
    बेहतरीन रचना........सादर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-02-2019) को "तम्बाकू दो त्याग" (चर्चा अंक-3243) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत ख़ूब श्वेता ! इश्क़ में एक बार नहीं, बार-बार चोट खाओ तो एक दिन इश्क़ ख़ुद हाज़िर होकर तुम्हारी क़दमबोसी करेगा.

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  4. वाह्ह्ह श्वेता हर शेर बेमिसाल।

    खुद का पता भूल
    औरों का मुकाम
    ढूंढते हो

    अंदाज भी है
    बेखुदी में
    खुद से ही बिछड़ रहे हो।

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  5. जब तक चोट नहीं लगती इश्क़ का असल फलसफा नहीं जान पाता कोई ...
    गज़ब के शेर हैं सभी ... लाजवाब दिल में उतरते ...

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  6. वाह !!श्वेता जी बहुत ख़ूब 👌👌
    लाज़बाब
    सादर

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  8. चीखती है खामोशियाँ तन्हाई में तेरी सदाएँ है...
    वाह वाह वाह

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  9. वाह बेहतरीन भावों का अपूर्व संगम।

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