Friday, February 15, 2019

जंगल में कोयल कूक रही है.....अनुज लुगुन

जंगल में कोयल कूक रही है
जाम की डालियों पर
पपीहे छुआ-छुई खेल रहे हैं
गिलहरियों की धमा-चौकड़ी
पंडुओं की नींद तोड़ रही है
यह पलाश के फूलने का समय है।

यह पलाश के फूलने का समय है
उनके जूड़े में खोंसी हुई है
सखुए की टहनी
कानों में सरहुल की बाली
अखाड़े में इतराती हुईं वे
किसी भी जवान मर्द से कह सकती हैं
अपने लिए एक दोना
हँड़िया का रस बचाए रखने के लिए
यह पलाश के फूलने का समय है।

यह पलाश के फूलने का समय है
उछलती हुईं वे
गोबर लीप रही हैं
उनका मन सिर पर ढोए
चुएँ के पानी की तरह छलक रहा है
सरना में पूजा के लिए
साखू के पेड़ों पर वे बाँस के तिनके नचा रही हैं
यह पलाश के फूलने क समय है।
-अनुज लुगुन 

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना
    सादर

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  2. यह पलाश के फूलने का समय है
    उनके जूड़े में खोंसी हुई है
    सखुए की टहनी
    कानों में सरहुल की बाली
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर...

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