Wednesday, February 21, 2018

वह सांप विषैला है तो मर क्यों नहीं जाता.....नूर मोहम्मद 'नूर'

जब शाम डराती है तो डर क्यों नहीं जाता
मैं सुब्ह का भूला हूं तो घर क्यों नहीं जाता।

ये वक्त ही दुश्मन है सितमगर है, अगर तो
मैं वक्त के सीने में उतर क्यों नहीं जाता।

सिमटा है अंधेरों में उजाले की तरह क्यों
यह दर्द मेरे दिल का बिखर क्यों नहीं जाता।

आज़ाद हूं तो फिर मेरी परवाज़ किधर है
नश्शा ये ग़ुलामी का उतर क्यों नहीं जाता।

हर रोज़ ही डंसता है उजाले को हवा को
वह सांप विषैला है तो मर क्यों नहीं जाता

क्या है जो उभरता है मेरे ज़ेहन में अक्सर
क्या है जो झिझकता है संवर क्यों नहीं जाता।
-नूर मोहम्मद 'नूर'

4 comments:

  1. आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (21-02-2018) को
    "सुधरा है परिवेश" (चर्चा अंक-2886)
    पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. वाह!!!शानदार रचना

    ReplyDelete
  3. बहुत ही उम्दा कविता है.
    Example1

    ReplyDelete