प्रेम का प्रथम स्पर्श उतना ही पावन व निर्मल जैसे कुएं का बकुल- तपती धूप में प्रदान करता शीतलता- सौंधी महक लिए। जब मिलता तो लगे बहुत कम लेकिन बढते वक्त के साथ भर जाता लबालब परिपूर्ण हो जाता कुआं हमेशा प्यास बुझाने के लिए कभी न कम होने के लिए। प्रेम का प्रथम स्पर्श मानो कुएं का बकुल। -ज्योति जैन
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-08-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2424 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDelete