Saturday, June 4, 2016

हम भाषा मज़हब में बट गये.....मनजीत कौर



यूँ तो शहर से शहर सट गये
हम भाषा मज़हब में बट गये

देखी जो उनके चेहरे की रंगत
हम उनकी राहों से ख़ुद हट गये

ख़त्म हो रहा दौर अब वह पुराना
परिवार चार बंदों में बट गये

क्या जान पाएँगे हम दर्द उनका
आज़ादी की ख़ातिर जो सर कट गये

जुनूं चढ़ रहा पैसे का इस क़द्र
अब जीवन के मूल्य घट गये

ऊँची उड़ान की चाह थी जिनको
उन ही परिंदों के पर कट गये
-मनजीत कौर
manjeetkr69@gmail.com

7 comments:

  1. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  3. जय मां हाटेशवरी....
    आप की रचना का लिंक होगा....
    दिनांक 05/06/2016 को...
    चर्चा मंच पर...
    आप भी चर्चा में सादर आमंत्रित हैं।

    ReplyDelete
  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बिछड़े सभी बारी बारी ... " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete