कल जब
निरंतर कोशिशों के बाद,
नहीं जा सकी
तुम्हारी याद,
तब
गुलमोहर की सिंदूरी छांव तले
गहराती
श्यामल सांझ के
पन्नों पर
लिखी मैंने
प्रेम-कविता,
शब्दों की नाजुक कलियां समेट
सजाया उसे
आसमान में उड़ते
हंसों की
श्वेत-पंक्तियों के परों पर,
चांद ने तिकोनी हंसी से
देर तक निहारा मेरे इस पागलपन को,
नन्हे सितारों ने
अपनी दूधिया रोशनी में
खूब नहलाया मेरी प्रेम कविता को,
कितने अभागे हो ना तुम
जो
ना कभी मेरे प्रेम के
विलक्षण अहसास के साक्षी होते हो
ना जान पाते हो कि
कैसे जन्म लेती है कविता।
लेकिन कितने भाग्यशाली हो तुम
मेरे साथ तुम्हें समूची सांवली कायनात प्रेम करती है,
और एक खूबसूरत कविता जन्म लेती है
सिर्फ तुम्हारे कारण।
-स्मृति आदित्य जोशी "फाल्गुनी"
आप की लिखी ये रचना....
ReplyDelete23/08/2015 को लिंक की जाएगी...
http://www.halchalwith5links.blogspot.com पर....
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-08-2015) को "समस्याओं के चक्रव्यूह में देश" (चर्चा अंक-2076) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार भाई मयंक जी
DeleteWwwaaaawwah .....
ReplyDeleteआभार दीदी
Deleteलेकिन कितने भाग्यशाली हो तुम
ReplyDeleteमेरे साथ तुम्हें समूची सांवली कायनात प्रेम करती है,
और एक खूबसूरत कविता जन्म लेती है
सिर्फ तुम्हारे कारण।
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जो
ReplyDeleteना कभी मेरे प्रेम के
विलक्षण अहसास के साक्षी होते हो
ना जान पाते हो कि
कैसे जन्म लेती है कविता।
यहीं है कविता का सत्य...........
http://savanxxx.blogspot.in