Tuesday, July 7, 2015

क्यों न हुए.......ठाकुर दास 'सिद्ध'



बेखबर मिलता तो वो,बनाते बेवकूफ
बाखबर मिला तो कहते, बेखबर क्यों न हुए

फैली जब-जब आग नफरत की,तो इनके घर जले
पर कभी लपटों की जद में,उनके घर क्यों न हुए 

शैतानियत का हर हुनर, अब सीखने की होड़ है
इंसान की इन्सानियत के, कुछ हुनर क्यों न हुए

भरपूर होता दिख रहा है, हर बुराई का असर
नेक बातें भी हैं पर, उनके ऊपर असर क्यों न हुए

जो जमाने को कुचलने के, लिए हसरत खड़े हैं
इस समय की ओखली में, उनके सर क्यों न हुए

इसको जाना था जहां, उसको भी जाना वहीं था
एक  थी मंजिल तो फिर,वो हमसफर क्यों न हुए

'सिद्ध' ये चक्का समय का, बिन थमें चलता निरन्तर
थे उस पहर जो-जो मजे, वो इस पहर क्यों न हुए

-ठाकुर दास 'सिद्ध'
सुभाष नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

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