Sunday, January 19, 2014

धूप और छांव की दोस्ती अज़ब गुजरी....ज़हूर नज़र

* फ़स्ले-गुल *
हर घड़ी कयामत थी, ये न पूछ कब गुज़री
बस यी गनीमत है, तेरे बाद शब गुज़री

कुंजे-गम में एक गुल भी न खिल सका पूरा
इस बला की तेज़ी से सरसरे-तरब गुज़री

तेरे गम की खुशबू से ज़िस्मों-ज़ां महक उट्ठे
सांस की हवा जब भी छू के मेरे लब गुजरी

एक साथ रह कर भी दूर ही रहे हम-तुम
धूप और छांव की दोस्ती  अज़ब गुजरी

जाने क्या हुआ हमको अब के फ़स्ले-गुल में भी
बर्गे-दिल नहीं लरज़ा, तेरी याद जब गुज़री

बेक़रार, बेकल है ज़ां सुकूं के सहरा में
आज तक न देखी थी ये घड़ी जो अब गुजरी

बादे-तर्के-उलफ़त भी यूं न जिए, लेकिन
वक़्त बेतरह बीता,उम्र बेसबब गुज़री

किस तरह तराशोगे, तुहमते-हवस हमपर
ज़िन्दगी हमारी तो सारी बेतलब गुज़री

सरसरे-तरबः आनंद की हवा, फ़स्ले-गुलः वसंत ऋतु,
बर्गे-दिलः दिल का पता, बादे-तर्के-उलफ़तः प्रेम विच्छेदन का पश्चात, 
तुहमते-हवसः लोलुपता का आरोप

-ज़हूर नज़र
जन्मः 22 अगस्त, 1923, मिंटगुमटी, साहीवाल

4 comments:

  1. खूबशूरत,बेहतरीन प्रस्तुति...!
    साझा करने के लिए आभार ,,,,

    RECENT POST -: आप इतना यहाँ पर न इतराइये.

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...

    आप सभी लोगो का मैं अपने ब्लॉग पर स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप सभी मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...

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  3. उम्दा प्रस्तुति

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