Monday, June 11, 2012

खुदा परस्त दुआ ढूंढ रहे हैं.......अंसार कम्बरी

वो हैं के वफ़ाओं में खता ढूंढ रहे हैं,
हम हैं के खताओं में वफ़ा ढूंढ रहे हैं !

हम हैं खुदा परस्त दुआ ढूंढ रहे हैं,
वो इश्क के बीमार दवा ढूंढ रहे हैं !

तुमने बड़े ही प्यार से जो हमको दिया है,
उस ज़हर में अमृत का मज़ा ढूंढ रहे हैं !

माँ-बाप अगर हैं तो ये समझो के स्वर्ग है,
कितने यतीम इनकी दुआ
ढूंढ रहे हैं !

उस दौर में सुनते हैं के घर-घर में बसी थी,
इस दौर में हम शर्मो-हया
ढूंढ रहे हैं !

वैसे तो पाक दामनी सबको पसंद है,
फिर आप क्यों औरत में अदा
ढूंढ रहे हैं !

हाँ ! 'क़म्बरी' ने सच के सिवा कुछ नहीं कहा,
कुछ लोग हैं जो सच की सज़ा
ढूंढ रहे हैं !


 
-----अंसार 'क़म्बरी'

11 comments:

  1. बहुत खूब.................

    सांझा करने का शुक्रिया यशोदा जी.

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    1. धन्यवाद आपको भी
      आपने कम्बरी भाईजान की रचना को सराहा

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  2. उस दौर में सुनते हैं के घर-घर में बसी थी,
    इस दौर में हम शर्मो-हया ढूंढ रहे हैं !



    वाह... कम्बरी साहब... कितनी उम्दा बात कही है आपने.. सच.. काफी दिनों के बाद कुछ अच्छा पढ़ने को मिला.. दिल से आपका आभार कम्बरी साहब...........................

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  3. ये बात कही आपने राहुल दिल से
    शुभ सँध्या
    कम्बरी भाईजान मेरे फेसबुक फ्रेण्ड हैं
    यदि आप हैं फेसबुक में तो मिलिये उनसे वहाँ
    सादर

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    1. जरुर यशोदाजी,

      हम तो कंबरी साहब को कहीं भी तलाश लेंगे...

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  4. thanks yashoda 4 dropping by !!

    lovely blog u have here :)
    hope to c u more

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  5. बहुत अच्छी रचनाएँ हैं |

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  6. शुक्रिया दीदी
    आपके संस्मरण को हरदम याद रखूँगी
    सादर

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