वो हैं के वफ़ाओं में खता ढूंढ रहे हैं,
हम हैं के खताओं में वफ़ा ढूंढ रहे हैं !
हम हैं खुदा परस्त दुआ ढूंढ रहे हैं,
वो इश्क के बीमार दवा ढूंढ रहे हैं !
तुमने बड़े ही प्यार से जो हमको दिया है,
उस ज़हर में अमृत का मज़ा ढूंढ रहे हैं !
माँ-बाप अगर हैं तो ये समझो के स्वर्ग है,
कितने यतीम इनकी दुआ ढूंढ रहे हैं !
उस दौर में सुनते हैं के घर-घर में बसी थी,
इस दौर में हम शर्मो-हया ढूंढ रहे हैं !
वैसे तो पाक दामनी सबको पसंद है,
फिर आप क्यों औरत में अदा ढूंढ रहे हैं !
हाँ ! 'क़म्बरी' ने सच के सिवा कुछ नहीं कहा,
कुछ लोग हैं जो सच की सज़ा ढूंढ रहे हैं !
माँ-बाप अगर हैं तो ये समझो के स्वर्ग है,
कितने यतीम इनकी दुआ ढूंढ रहे हैं !
उस दौर में सुनते हैं के घर-घर में बसी थी,
इस दौर में हम शर्मो-हया ढूंढ रहे हैं !
वैसे तो पाक दामनी सबको पसंद है,
फिर आप क्यों औरत में अदा ढूंढ रहे हैं !
हाँ ! 'क़म्बरी' ने सच के सिवा कुछ नहीं कहा,
कुछ लोग हैं जो सच की सज़ा ढूंढ रहे हैं !
-----अंसार 'क़म्बरी'
बहुत खूब.................
ReplyDeleteसांझा करने का शुक्रिया यशोदा जी.
धन्यवाद आपको भी
Deleteआपने कम्बरी भाईजान की रचना को सराहा
उस दौर में सुनते हैं के घर-घर में बसी थी,
ReplyDeleteइस दौर में हम शर्मो-हया ढूंढ रहे हैं !
वाह... कम्बरी साहब... कितनी उम्दा बात कही है आपने.. सच.. काफी दिनों के बाद कुछ अच्छा पढ़ने को मिला.. दिल से आपका आभार कम्बरी साहब...........................
ये बात कही आपने राहुल दिल से
ReplyDeleteशुभ सँध्या
कम्बरी भाईजान मेरे फेसबुक फ्रेण्ड हैं
यदि आप हैं फेसबुक में तो मिलिये उनसे वहाँ
सादर
जरुर यशोदाजी,
Deleteहम तो कंबरी साहब को कहीं भी तलाश लेंगे...
bahut badhiya
ReplyDeleteशुक्रिया अना जी
Deletethanks yashoda 4 dropping by !!
ReplyDeletelovely blog u have here :)
hope to c u more
धन्यवाद ज्योति जी
Deleteबहुत अच्छी रचनाएँ हैं |
ReplyDeleteशुक्रिया दीदी
ReplyDeleteआपके संस्मरण को हरदम याद रखूँगी
सादर