Sunday, May 20, 2012

बोझिल आहें देती हैं दुहाई...............दीप्ति शर्मा

अथाह मन की गहराई
और मन में उठी वो बातें
हर तरफ है सन्नाटा
और ख़ामोश लफ़्ज़ों में
कही मेरी कोई बात
किसी ने भी समझ नहीं पायी
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।

अब शहनाई की वो गूँज
देती है हर वक्त सुनाई
तभी तो दुल्हन बनी तेरी
वो धुँधली परछाईं
अब हर जगह मुझे
देने लगी है दिखाई
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।

पर दिल में इक कसर
उभर कर है आई
इंतज़ार में अब भी तेरे
मेरी ये आँखें हैं पथराई
बाट तकते तेरी अब
बोझिल आहें देती हैं दुहाई
पर तुझे नहीं दी अब तक
मेरी धड़कनें भी सुनाई
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।


© दीप्ति शर्मा

4 comments:

  1. बहुत सुंदर .........

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  2. पर तुझे नहीं दी अब तक
    मेरी धड़कनें भी सुनाई
    कानों में गूँज रही उस
    इक अजीब सी आवाज़ से
    तू हो गयी है कितनी पराई ।
    हो गई कितनी पराई ,
    अहसास फिर से हुई !!
    शुभकामनायें !!

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