Tuesday, May 22, 2012

साथ में चले वो क़ाफ़िला रहा..........स्व. पण्डित कृष्णानन्द चौबे


हमको शिकायतें रहीं, उनको गिला रहा,
मुद्दत से बहरहाल यही सिलसिला रहा !

मेरे खुतूत कैसे रकीबों ने पढ़ लिये,

लगता है नामावर मेरा उनसे मिला रहा !

जूड़े में गुल को जैसे नई ज़िन्दगी मिली,
वो ज़िन्दगी बाद भी कैसा खिला रहा !

दिल मेरा अपने वास्ते भी सोचता नगर,
वो तो बस उनकी याद में ही मुब्तिला रहा !

तुम जिसके साथ हो लिये वो एक भीड़ थी,
हम जिसके साथ में चले वो क़ाफ़िला रहा !

 
----स्व. पण्डित कृष्णानन्द चौबे
प्रस्तुतिकरणः ज़नाब अन्सार काम्बरी

7 comments:

  1. यशोदा जी क्या बात है ,हृदय को छुए भाव ,,,,अनछुए तथ्यों से संवाद करती पंक्तियाँ ........बधाईयाँ जी /

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  2. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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  3. बहुत सुंदर कविता । मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

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    1. जी बहुत-बहुत शुक्रिया

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  4. Replies
    1. शुक्रिया शबनम बहन

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