पौष की वह
धुआं भोर
मखमली चादरी
शीत दोपहरी सा..
घुमड़ता बादल वह
सांझ सिंदूरी
बरसता बूंद
धूप लहरी सा
धनकता पहाड़ वह
हरीतिमा हरी
महकता द्रुत
फूल पापड़ी सा
पर्वत गोद वह
इंद्रधनुष संतरी
श्रृग बहता
अमृत सीकरी सा
धरा हिम वह
मेघ जड़ी
तारा दीप
जलता अंगार सा
सूर्य चंद्र वह
क्षितिज प्रहरी
श्वेत आकाशगंगा
आरव लड़ी सा...
- डॉ. सीमा भट्टाचार्य
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर संग्रह ।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनमोहक..
पौष की ठिठुरती और सुहानी भोर पर बहुत सुन्दर रचना प्रिय सीमा जी।🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मनहर रचना ।
ReplyDeleteपढ़ते-पढ़ते ऐसा लगा जैसे किसी शांत पहाड़ी गांव में बैठे मौसम को आंखों से नहीं, दिल से देख रहे हों। वो ठंडक, वो नमी, वो रंग, सब धीरे-धीरे महसूस होने लगे। आपने जो अहसास रचा, वो सिर्फ पढ़ने लायक नहीं था, जीने लायक था। हर पल जैसे कोई कहानी कह रहा हो, बिना बोले, बस एहसास से।
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