दुख (हाईकु)
सूखती नदी
उजड़ते मकान
अपना गाँव
कैसा विकास
लोगों की भेड़ चाल
सुख न शांति
गाँवों में बसा
नदियों वाला देश
पुरानी बात
सूखती नदी
बढ़ता गंदा नाला
मेरा शहर
बिका सम्मान
क्या खेत खलिहान
दुखी किसान
लोग बेहाल
गिरवी जायदाद
कहाँ ठिकाना
सड़े अनाज
जनता है लाचार
सोये सरकार
वाह
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteसच में यार कभी नदियों और खेतों से भरे गाँव आज सूखी नदियों और गंदे नालों में बदल गए हैं। सच कहूँ तो विकास के नाम पर हमने गाँवों की आत्मा ही बेच डाली। किसान, जो इस देश की रीढ़ है, वही सबसे ज़्यादा लाचार है और सरकार बस सोती रहती है।
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