Tuesday, October 8, 2019

खट्‍टी चटनी-जैसी माँ ...निदा फ़ाजली

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्‍टी चटनी-जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा, फुकनी-जैसी माँ

बान की खुरीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थक‍ी दोपहरी-जैसी माँ

चिडि़यों की चहकार में गूँज़े
राधा-मोहन, अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी-जैसी माँ

बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी-सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी -जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की-जैसी माँ। 
- निदा फ़ाजली

5 comments:

  1. बेहतरीन रचना निदा फाजली जी की ...
    सीधे मन में उतरती हुयी ...

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  2. बेहतरीन शायर की बेहतरीन प्रस्तुति।

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  3. वाह!!!
    लाजवाब सृजन....

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