Monday, October 14, 2019

मजबूत प्रतिद्वंदी..... अमरेंद्र "अमर"



जब भी मन होता है 

तुमसे मिलने का 
उसी पेड़ की छाव में 
आ जाता हूँ, 



पछी घोसले नहीं बनाते

अब इस पेड़ पर 
तो क्या हुआ 
छाव में बैठते तो है ,



ये आज भी ,

उन हठीले तुफानो का सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी है 
जिसमे न जाने कितने घर उजड़  गए   
और ये  खड़ा देखता रहा ,

"बस रिश्ते कमजोर पड़ गए 
जो इसकी छाव में बने"  



- अमरेंद्र  "अमर"

2 comments:

  1. बहुत सुंदर लाजवाब भाव प्रस्तुति।
    उम्दा सृजन।

    ReplyDelete