Wednesday, October 16, 2019

जांबाज़....अफ़ज़ल अलाहाबादी

चांद तारों का वो हमराज़ नहीं हो सकता,
ख़ुद से माइल-ए-परवाज़ नहीं हो सकता

मेरे जैसा तेरा अंदाज नहीं हो सकता
इक कबूतर कभी शाहबाज़ नहीं हो सकता

अज़्म फ़रहाद जो रखता नहीं अपने दिल में
वो ज़ुनु-ख़ेजी में मुमताज़ नहीं हो सकता

तू ही रखता है हर राज़ मेरा पोशीदा,
तेरे जैसा कोई हमराज़ नहीं हो सकता.

मुझको जो कुछ भी मिला ये है इनायत तेरी,
अपनी कोशिश पे मुझे नाज़ नही हो सकता.

सर को अपने जो हथेली पे रख ले अफ़ज़ल,
मेरी नज़रों में वो जांबाज़ नहीं हो सकता.
-अफ़ज़ल अलाहाबादी

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 17 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  2. वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब...

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  3. वाह उम्दा,
    बेहतरीन अश्आर।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3491 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति इस मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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