Tuesday, October 15, 2019

दीपक दम तोड़ रहा है..कुसुम कोठारी

चारों तरफ कैसा तूफान है
हर दीपक दम तोड़ रहा है !


इंसानों की भीड जितनी बढी है 

आदमियत  उतनी ही नदारद है !


हाथों मे तीर लिये हर शख्स है

हर नजर नाखून लिये बैठी है !


किनारों पे दम तोडती लहरें है

समंदर से लगती खफा खफा है !


स्वार्थ का खेल हर कोई खेल रहा है

मासूमियत लाचार दम तोड रही है !


शांति के दूत कहीं दिखते नही है

हर और शिकारी बाज उड रहे है !


कितने हिस्सों मे बंट गया मानव है

अमन ओ चैन मुह छुपा के रो रहा है !!


-- कुसुम कोठारी

5 comments:

  1. यही दीपक इस तम को भी दूर करेगा। आशावान रहें । चिंतनपरक इस रचना हेतु बधाई ।

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  2. इंसानों की भीड जितनी बढी है
    आदमियत उतनी ही नदारद है

    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति कुसुम जी ,सादर नमन

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