Wednesday, October 31, 2018

ख़ुशबू जैसे लोग मिले....गुलज़ार

खुशबू जैसे लोग मिले....गुलज़ार

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में

जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में

शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मेंं

-गुलज़ार

10 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल
    आभार सखि,
    सादर...

    ReplyDelete
  2. गुलजार की बात ही अलहदा है।

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 1.11.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3142 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    ReplyDelete
  5. दो लफ़्ज़ों में गुलज़ार कितना कुछ कह जाते हैं!

    ReplyDelete
  6. वाह!!गुलजार साहब की तो बात ही निराली है !!

    ReplyDelete
  7. बेहतरीन
    शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर ग़ज़ल

    ReplyDelete