Sunday, October 28, 2018

क्यों इन तारों को उलझाते.....महादेवी वर्मा

पल में रागों को झंकृत कर,
फिर विराग का अस्फुट स्वर भर,
मेरी लघु जीवन-वीणा पर
क्या यह अस्फुट गाते?

लय में मेरा चिरकरुणा-धन,
कम्पन में सपनों का स्पन्दन,
गीतों में भर चिर सुख चिर दुख
कण कण में बिखराते!

मेरे शैशव के मधु में घुल,
मेरे यौवन के मद में ढुल,
मेरे आँसू स्मित में हिलमिल
मेरे क्यों न कहाते?
-महादेवी वर्मा

5 comments:

  1. यादगार कविता पढ़वाई आपने...
    आभार...
    सादर...

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-10-2018) को "मन में हजारों चाह हैं" (चर्चा अंक-3139) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 28/10/2018 की बुलेटिन, " रुके रुके से कदम ... रुक के बार बार चले “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. दीप जलने से पहले तारों की बात
    दोनों के बहाने कट जाती लंबी रात

    धन्यवाद.

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