Wednesday, November 22, 2017

एक ख़त ...!!!....तरुणा मिश्रा

ख़त तुमको दिलदार लिखूँगी..
पायल कंगन हार लिखूँगी ;

मैं कश्ती हूँ जीवन तूफां...
पर तुमको पतवार लिखूँगी ;

जो है उल्फ़त नए चलन की...
उसको कारोबार लिखूँगी ;

सीने से एक बार लगा लो...
तुमको अपना प्यार लिखूँगी ;

जब भी मयस्सर होगी फ़ुर्सत...
मिलना नदिया पार लिखूँगी ;

तुम हो मेरे , हाँ मेरे हो...
एक नहीं सौ बार लिखूँगी ;

तुम ही नहीं तो मैं काजल को...
इन पलकों पर भार लिखूँगी ;

तुम बिन जो बीतेगा 'तरुणा'...
उस पल को आज़ार लिखूँगी..!!
(आज़ार- दुःख )


9 comments:

  1. सरल सरस आकर्षक शब्दों की धार प्रवाहता के साथ सुंदर रचना।
    शुभ दिवस ।

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  2. वाह!!बहुत सुंदर ।

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  3. kya bat hai.....behad shandar rachna..
    padhkar man khush ho gaya

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  4. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 23-11-2017 को प्रकाशनार्थ 860 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

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  5. वाह वाह!!!! बहुत बहुत बहुत शानदार। लाज़वाब। बेहद उम्दा।

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  6. प्रेम को आर्पित करती रचना ..जी बहुत खुब..लिखा आपने..!

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  7. बहुत ही सुन्दर ....लाजवाब....

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  8. आदरणीय तरुणा जी ब-- ड़ा ही हृदयस्पर्शी ख़त है | सभी पंक्तियाँ मानों मन से निकल मन में समा जाती हैं |

    मैं कश्ती हूँ जीवन तूफां...
    पर तुमको पतवार लिखूँगी --- बहुत खूब !!!!!!!!!!
    सस्नेह

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