Monday, November 27, 2017

साँस भर जी लो.....डॉ. शैलजा सक्सेना

तपो,
अपनी आँच में तपो कुछ देर,
होंठों की अँजुरी से
जीवन रस चखो-
बैठो...

कुछ देर अपने सँग
अपनी आँच से घिरे,
अपनी प्यास से पिरे,
अपनी आस से घिरे,
बैठो...

ताकि तुम्हे कल यह न लगे
साँस भर तुम यहाँ जी न सके।।

-डॉ. शैलजा सक्सेना

5 comments:

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  2. आप अपनी कविता के माध्यम से कह रहे हो की थोड़ा रुक, खुद के साथ बैठ, अपनी ही गर्मी और प्यास को महसूस कर। और यही बात आपकी अच्छी लगी क्योंकि हम रोज़ की भागदौड़ में खुद को ही भूल जाते हैं। ये बात भी बिलकुल सही है की अगर हम खुद से नहीं मिलेंगे, तो बाद में खालीपन ही बचेगा।

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