दर्द घुटनों का मेरा जाता रहा ये देख कर
थामकर ऊँगली नवासा सीढ़ियां चढ़ने लगा
***
बरी हो कर मेरा क़ातिल सभी के सामने खुश है
अकेले में फ़फ़क कर रो पड़ेगा , देखना इक दिन
***
मौन के शूल को पंखुड़ी से छुआ
मुस्कुराने से मुश्किल सरल हो गयी
***
कभी है "चौथ" उलझन में, कभी रोज़े परेशां हैं
किसी दिन चाँद के ख़ातिर, बड़ी दीवार टूटेगी
***
तेरा वादा सियासतदान ऐसा खोटा सिक्का है
जिसे अँधा भिखारी भी सड़क पर फेंक देता है
-राम नारायण हलधर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-09-2017) को "विजयादशमी पर्व" (चर्चा अंक 2743) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर।
ReplyDelete