Saturday, September 16, 2017

सुख या फिर ख़ुशी..


चुनते हैं हम
सुख या फिर
ख़ुशी..
रह कर भी
शिविर में ..
प्रताड़नाओं के
हम मन के
मौसम को... 
बासन्ती बना सकते हैं
कोई इन्सान..
कोई वस्तु 
या फिर 
प्रक्रिया हो 
कोई भी....
इतनी बलशाली नहीं
कि हमारे मन पर
कब्ज़ा कर सके
वो भी बगैर हमारी 
मर्जी....और हम
मन से..करते हैं 
कोशिश...और
तलाश लेतें हैं
खुशियाँ...
-मन की उपज
#हिन्दी दिवस

5 comments:

  1. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर

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  2. सुन्दर रचना

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  3. बहुत सुन्दर‎ सृजन .

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि : एयर मार्शल अर्जन सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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