Sunday, October 4, 2015

चांद पर मेरी उदासी छा जाएगी...स्मृति आदित्य











कल पिघल‍ती चांदनी में 
देखकर अकेली मुझको 
तुम्हारा प्यार
चलकर मेरे पास आया था 
चांद बहुत खिल गया था। 

आज बिखरती चांदनी में 
रूलाकर अकेली मुझको 
तुम्हारी बेवफाई 
चलकर मेरे पास आई है 
चांद पर बेबसी छाई है। 

कल मचलती चांदनी में 
जगाकर अकेली मुझको 
तुम्हारी याद 
चलकर मेरे पास आएगी 
चांद पर मेरी उदासी छा जाएगी।

-स्मृति आदित्य

12 comments:

  1. शुभ संधया...दीदी...
    चुनकर कविता पेश की है आपने....

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  2. चांद पर मेरी उदासी छा जाएगी, ''गर छलक आए मेरी आंखों में आंसू'' बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

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  3. चांद पर मेरी उदासी छा जाएगी, ''गर छलक आए मेरी आंखों में आंसू'' बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

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