Wednesday, November 13, 2013

घर-घर परी ही बन कें जहाँ बीजरी सही................नवीन सी. चतुर्वेदी



अपनी खुसी सूँ थोरें ई सब नें करी सही
भौरे नें दाब-दूब कें करबा लई सही

जै सोच कें ई सबनें उमर भर दई सही
समझे कि अब की बार की है आखरी सही

पहली सही नें लूट लयो सगरौ चैन-चान
अब और का हरैगी मरी दूसरी सही

मन कह रह्यौ है भौरे की बहियन कूँ फार दऊँ
फिर देखूँ काँ सों लाउतै पुरखान की सही

धौंताए सूँ नहर पे खड़ो है मुनीम साब
रुक्का पे लेयगौ मेरी सायद नई सही

म्हाँ- म्हाँ जमीन आग उगल रइ ए आज तक
घर-घर परी ही बन कें जहाँ बीजरी सही

तो कूँ भी जो ‘नवीन’ पसंद आबै मेरी बात
तौ कर गजल पे अपने सगे-गाम की सही

सही = दस्तख़त, सगरौ – सारा, कुल, हरैगी – हर लेगी, छीनेगी, मरी = ब्रजभाषा की एक प्यार भरी गाली, बहियन = बही का बहुवचन, लाउतै = लाता है, धौंताए सूँ = अलस्सुबह से, बीजरी = बिजली,

[ब्रजभाषा – ग्रामीण]

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+91 99 670 24 593


1 comment:

  1. सुन्दर रचना,बेहतरीन, कभी इधर भी पधारें
    बहुत बहुत बधाई
    सादर मदन

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