Wednesday, November 11, 2020

अपनी औकात की मत नुमाईश करो ...कौशल शुक्ला


देख गिरी दीवार, धमाका मेरा है
इस प्रदेश का सीएम, काका मेरा है
जुबां हिलाने से पहले यह तय कर ले
मेरी है सरकार, इलाका मेरा है

प्यार नहीं फिर भी यह दावा काहे का ?
लुटने को तैयार, छलावा काहे का ?
मुझको पानी-पानी करके खुश हो ले
दिल मे रखते हो यह लावा काहे का ?

आज जुदा हूँ तो पछतावा काहे का ?
देते हो हर रोज बुलावा काहे का ?
घर में भुजी भांग नहीं तेरे 'कौशल'
भोज जायकेदार, दिखावा काहे का ?

बस यूँही रास्ता नापते-नापते
आ गया मैं इधर ही, जहाँ आप थे
'अपनी औकात की मत नुमाईश करो'
मेरे दिल ने कहा हाँफते-हाँफते
- कौशल शुक्ला


11 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. व्यंग्य और कटाक्ष से भरपूर...बढ़िया ग़ज़ल
    पढ़ कर आनंद आ गया....

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  5. वाह !बेहतरीन सृजन।

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  6. :) बहुत सशक्त रचना।

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