Tuesday, November 10, 2020

द्रोण तो बेचारे बुरे हो गए। जबकि उन्होंने पांडवो का धर्मयुद्ध में ध्यान रखा है।

गुरु दक्षिणा में एकलव्य के द्धारा अंगूठा काटकर देने के बाद एकलव्य का क्या हुआ?...शून्य से अनन्त पुस्तक से



ये बात तो एकलव्य को भी नही पता कि कुछ तथाकथित विद्वानों ने उसका अंगूठा ही कटवा दिया। द्रोण को तो ऐसे ही बदनाम कर रखा है। बेचारे अश्वथामा भी सोचते होंगे कि पिताजी का बुरा चरित्र किंसने करवाया? जबरदस्ती अंगूठा कटवा दिया। ओशो भी द्रोण को बदनाम कर गए। उन्होंने भी कह दिया कि तुम्हारे धर्म के गुरु तो बिना दीक्षा के ही दक्षिणा लें लिए। परन्तु ओशो ने भी बात बिगाड़ दी। अर्थ का अनर्थ कर दिया।

वास्तविकता ये थी कि द्रोणाचार्य को पता था कि आगे जाकर धर्मयुद्ध होगा। उन्हें इस बात का पहले ही आभास हो गया था। और एकलव्य के पिता कुरुराज्य के आधीन थे। जनपद के प्रमुख थे। इसीलिए निश्चय ही एकलव्य कौरवो के पक्ष से लड़ता। अधर्म की तरफ से लड़ता। धर्म के विरोध में रहता। एकलव्य अर्जुन के बराबर था। अर्जुन से युद्ध कर सकता था। हालांकि जीत तो फिर भी पांडव की होती परन्तु एकलव्य बाकी योद्धाओं और सेना का अच्छा खासा विनाश कर देता।

परन्तु नियति को धर्म की रक्षा करनी है। और द्रोण को यह सब पहले ही दिख रहा था। इसलिए द्रोण ने दक्षिणा स्वरूप एक वचन मांग लिया। वचन मांगा की एकलव्य आगामी धर्मयुद्ध में भाग न ले। बस यह सुनकर एकलव्य को झटका लगा। उसने कहा कि "गुरुदेव, आपने तो ऐसा वचन मांग लिया जैसे किसीने मेरा अंगूठा मांगा हो"।

बस, इतनी सी बात का रायता बनाकर कुछ विद्वानों ने परोस दिया। टीवी सीरियल ने भी यही काम किया। साम्प्रदायिक गुरूओं ने भी यही किया। यहां तक कि ओशो ने भी गलत कर दिया।

और बस, द्रोण तो बेचारे बुरे हो गए।
जबकि उन्होंने पांडवो का धर्मयुद्ध में ध्यान रखा है।




5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 10 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह .... इतिहास का भूगोल बदल गया...
    बहुत बढियां

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  3. बहुत सही बात लिखी आपने। एक बात और थी एकलव्य ने जो विद्या सीखी थी वो चोरी चुपके छिपके सीखी थी। ये भी एक प्रमुख कारण था।

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