खाली स्क्रीन तकते रहना
उस पर गुज़रते लफ़्ज़ों
और एक जैसे चेहरों को
पारदर्शी होते देखना
"रीडिंग बिटवीन द लाइन्स" का हुनर
अब काम आ रहा है
डिस्कोर्स की परख होना
वरदान भी है अभिशाप भी
कर्कश अट्टहासों के बाज़ार में
अंतर्मन का पार्श्वस्वर होना
दुश्वार है
बहिष्कृत रह कर
लोकप्रिय होने से
अपना एक संसार होना
सुनते हैं
सर्वव्यापी महामारी है
अकेले मरने की
फिर भी लाचारी है
ये पल पल एहसास
चाय में घोलती हूँ
धुएँ में फूंक देती हूँ
गोली में गटक लेती हूँ
और देखती हूँ
तुम्हें
अपनी स्क्रीन से गुज़रते हुए
-पूजा प्रियंवदा
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 31 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteअनुपम ।
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