Tuesday, November 20, 2018

लिबास....गौरव धूत

लिबास जो पहना था साल भर,
उम्र ने अब उतार कर रख दिया,
और साथ में उतार दिए,
वो गिनती के दिन, जो मुझे दिए थे,
कह कर के ये तेरा हिस्सा है,
इनको जिस मर्ज़ी खर्च कर।
बचा तो ना पाया मैं एक दिन भी,
पर जाने कहाँ उनको दे आया हूँ।
खुशियाँ तो नहीं खरीदी मैंने उनसे,
ना ही किसी के दुख बाँटे मैंने,
हाँ, कभी निकाले थे कुछ दिन,
किसी आरज़ू के लिए,
शायद बाक़ी किश्तें भरता रहा हूँ,
उसके पूरी होने के इंतज़ार में।
-गौरव धूत

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-11-2018) को "ईमान बदलते देखे हैं" (चर्चा अंक-3162) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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