किसने ऐसा किया इशारा था
ख़त मेरा था पता तुम्हारा था
तुम ये कहते हो भूल जाऊँ मैं
तुमने मेरा चेहरा उतारा था
काम आई फिर अपनी ताकत ही
कोई किसका यहां सहारा था
हम अदालत में झूठ कह बैठे
और बाक़ी न कोई चारा था
फिर इकबार तुम तो सुन लेते
मैंनें तुमको अगर पुकारा था
इश्क़ में ये बात अहम ही नहीं
कौन जीता था कौन हारा था
उसको कहते थे लोग सब ज़ालिम
फिर भी बच्चा वो मां को प्यारा था
- डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री
मधुरिमा से...
शानदार है।
ReplyDeleteआभार आपका आप मेरे ब्लॉग तक आई मैं प्रोत्साहित हुआ
सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteइश्क़ में ये बात अहम ही नहीं
ReplyDeleteकौन जीता था कौन हारा था
बहोत खूब।