जीवन की आपा-धापी में
सोचा न था
पीछे छूट जाएंगे
कुछ सपने कुछ लम्हें
कुछ वादे कुछ इरादे
वक्त का दरिया बहते-बहते
बहा ले जाएगा सब कुछ
बचपन की यादें
युवा आँखों में तैरते सपने
बालों में नजर आती सफेदी
चश्में से झांकती कुछ आशाएं
शायद सब कुछ
मगर ऐसा न हो सका
वो सब जो पीछे छूटना था
आज भी साथ है
बस अपने ही पीछे छूट चले हैं
छूट चले हैं या छोड़ चले हैं
आहिस्ता-आहिस्ता
उम्र के मोड़ पर
अब साथ है तो सिर्फ
रिश्तों से बंधे कुछ नाम
और दीवारों में टंगी कुछ तस्वीरें
शायद कल
इन तस्वीरों में शामिल हो जाऊँ
मैं भी !!!
-शुभ्रा ठाकुर, रायपुर
जय मां हाटेशवरी....
ReplyDeleteआप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 02/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर... लिंक की जा रही है...
इस चर्चा में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर........... मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा |
ReplyDeletehttp://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in/
शुभ्रा ठाकुर जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
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