Wednesday, March 4, 2015

मेरे हमदम.................प्रदीप दीक्षित















जब आप दूर चले जाते हैँ धड़कनेँ थमने लगती हैँ
सांसेँ रुक जाती हैँ
यूं ही. . .

डर लगता है तुम्हेँ खोने से
तुमसे जुदा होने से
किसी का होने से
यूं ही. . .

बहार बन आये पतझड़ मेँ
दिल तुम्हारे लिए बेकरार था
तुम्हारा ही इंतजार था
यूं ही. . .

साथ निभाने का वादा करो
तब मुझे सुकून मिलेगा
सफर खुशनुमा कटेगा
यूं ही. . .


-प्रदीप दीक्षित
 


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4 comments:

  1. Good Morning,
    Come to my blog and read hindi poems written by Rishabh Shukla (me).

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/?m=1

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-3-2015 को चर्चा मंच पर हम कहाँ जा रहे हैं { चर्चा - 1908 } पर दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. .बहुत ही सुन्दर , शुभकामनायें

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  4. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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