स्नेह के पंखो पर सवार
फूलों की रेशमी छुवन लिये
महकती महकाती
छोटी छोटी रातें.
फूलों की वासंती बहार
सहेजे कितना प्यार
मन को दुलराती
छोटी छोटी सौगातें.
हरित भूमि पर
दूब थी मखमली
मरुस्थल में फुहारें
तुम्हारे नेह की बातें.
सतरंगी तूलिका,गोधूलि बेला
ऑंखों में भर कर चाहत के रंग
देह बन गई चंदन
हो गई कस्तूरी सांसें.
-----उर्मिला जैन 'प्रिया'
हरे कच्चे इस वन में खोया है पांखी
अनायास ही सोये मन में झांका है पांखी
नीले नीले प्रेमगीत के मुखड़े जैसा है
नभ का टुकड़ा है ये सुख की वर्षा है पांखी
जाने कौन दिशा से आया जाएगा किस ओर
मंद पवन की फुगड़ी है ये गरबा है पांखी
घर सारे वर्षा मे भीगे, देह धर्म भीगे
अपने पंखों के कौतुक में डूबा है पांखी
धूप में भीगा मन शब्दों के अर्थ - अनर्थ करे
भरे गले की देहरी में यूँ अटका है पांखी...
-------विजय वाते
प्रस्तुतिकरणः श्याम सुन्दर सारस्वत
अब है ख़ुशी ख़ुशी में न ग़म है मलाल में
दुनिया से खो गया हूँ तुम्हारे ख़याल में
मुझ को न अपना होश न दुनिया का होश है
मस्त होके बैठा हूँ तुम्हारे ख़याल में
तारों से पूछ लो मेरी रुदाद-ए-ज़िन्दगी
रातों को जागता हूँ तुम्हारे ख़याल में
दुनिया को इल्म क्या है ज़माने को क्या ख़बर
दुनिया भुला चुका हूँ तुम्हारे ख़याल में
दुनिया खड़ी है मुन्तज़िर-ए-नग़्मा-ए-अलम
'बेहज़द' चुप खड़े हैं किसी के ख़याल में...
----बहज़ाद लखनवी
प्रस्तुतिकरणः श्याम सुन्दर सारस्वत