Monday, April 29, 2013
Sunday, April 28, 2013
तेरा क्या जाता.............हरि पौडेल
चन्द लम्हा और गुजर जाता, तो तेरा क्या जाता
ये रात गर तेरी खुशबू ले जाती, तो तेरा क्या जाता
प्यासी नजरों से कोइ देखे, तो शिकायत ही क्यों ?
महफिल मे गर रौनक आ जाती, तो तेरा क्या जाता
तेरी पायल की झंकार से जाग पडते ये मरते मजनू
बंजर पड़े बाग मे गर बहार आती, तो तेरा क्या जाता
लड़खडाते हुए गुज़र रहे है कई प्यासे तेरी गलियों मे
ज़ाम टकराए गर सम्हलने के लिए, तो तेरा क्या जाता
शोहरत सुन के ही आए है ये दीवाने इस महफिल मे
नज़ाकत से तेरी गर पाते है सुकूँ, तो तेरा क्या जाता
--हरि पौडेल
सम्पादनः यशोदा दिग्विजय अग्रवाल
मूल रचना कृपया यहाँ पढ़े
यहाँ कुछ तस्वीरें हैं, लक्ष्मी वाहन उल्लू की...,,,,,,,,,,,फारवर्ड फॉर ऑल
Stunning Photos of Camouflaged Owls Can You Spot Them?
Owls are fierce predators, but even they have to sleep from time to time. When they do, they are exposed to bigger predators as well as 'mobbing' by smaller prey animals. Mobbing means smaller animals band together to fight off the owl's feared attacks.Certain types of birds, when identifying an owl on their turf, might band together to harass and fight the owl and chase it off. Also, owls rely on stealth and surprise when hunting, and so a good camouflage can be the difference between dinner and going to sleep on an empty stomach.
यहाँ कुछ तस्वीरें हैं, लक्ष्मी वाहन उल्लू की...
प्रकृति के अनुसार अपने रंगों में परिवर्तन करता है
चलिये ! इन तस्वीरों में उल्लू को पहचानिये ...
हम याहू ग्रुप फारवर्ड फॉर ऑल के आभारी हैं
Saturday, April 27, 2013
पथ में जिसके कांटे अधिक हैं............डॉ. परमजीत ओबराय (एन.आर.आई)
संसार क्षेत्र की यात्रा करने
चली आत्मा
रूप अनेक धार।
पथ में जिसके कांटे अधिक हैं
फूल हैं केवल चार।
कुछ रूप हैं उसके बलवान
दुर्बल को नित मिली असफलता
बलवान को पहचान।
सभी रूपों में बढ़कर है
मानव रूप महान।
मानव है सर्वश्रेष्ठ रचना
उस ईश की
रखें यह सदा ध्यान।
शरीररूपी विश्राम स्थलों पर
डेरा अपना डाल
नव प्रभात हो चला जाएगा
आत्मा यात्री महान।
- डॉ. परमजीत ओबराय
Friday, April 26, 2013
किससे जाकर बोले मेरी गजल.............अजीज अंसारी
जैसा मौका देखे वैसा हो ले मेरी गजल
वो बातें जो मैं नहीं बोलूं बोले मेरी गजल
चांद-सितारे अर्श1 पे जाके जब चाहें ले आएं
ऐसे अदीबोशायर2 से क्यूं बोले मेरी गजल
आज खुशी का मोती शायद इसको भी मिल जाए
गम की रेत को साहिल-साहिल रौले मेरी गजल
शोर-शराबे से घबराकर जब मैं राहत चाहूं
मेरे कानों में रस आकर घोले मेरी गजल
दिल से इसको चाहने वाला जब भी कभी मिल जाए
मन ही मन में झूमे गाए, डोले मेरी गजल
जिसको देखो इससे आकर अपना दुख कह जाए
अपने दुख को किससे जाकर बोले मेरी गजल
इतनी हिम्मत इतनी ताकत दी है खुदा ने 'अजीज'
दुनिया भर के भेद सभी पर खोले मेरी गजल
1. आकाश 2. लेखक-कवि
- अजीज अंसारी
ए 'रेखा' गमों की मुहब्बत तो देख.........रेखा अग्रवाल
मेरे हाल पर रहम खाते हुए,
वो आये तो हैं मुस्कुराते हुए !
जहां दिल को जाना था ए साथिया,
वहीं ले गया मुजको जाते हुए !
ये तूफान कितना मददगार है,
चला है सफीना बढाते हुए !
मुझे याद फिर बिजलियां आ गई,
नया आशियाना बनाते हुए !
जमाने की क्यूं अक्ल मारी गई,
मेरे दिल का सिक्का भुनाते हुए !
ये हालात ने क्या असर कर दिया,
जो मैं रो पड़ी मुस्कुराते हुए !
ए 'रेखा' गमों की मुहब्बत तो देख,
करीब आ गए दूर जाते हुए !
--रेखा अग्रवाल
ग़ज़लः सौजन्य श्री अशोक खाचर
Thursday, April 25, 2013
बहुत खुशहाल हूं मैं आज 'रेखा'...................रेखा अग्रवाल
कोई यह बात भी पूछे उसी से,
अंधेरा क्यूं खफा है रोशनी से !
तुम्हारे अपने ही कब काम आए,
तुम्हें उम्मीद तो थी हर किसी से !
अब ऐसे दर्द को क्या दर्द समझें,
जो सीने में दबा है खामोशी से !
नहीं भाती है दिल को कोइ सूरत,
हमें तो वास्ता है आप ही से !
तुम्हें पूजा, तुम्हें चाहा है मैने,
बडी तस्कीन है इस बन्दगी से !
किसी के लौट आने की खबर है,
बहुत बेचैन हूं मैं रात ही से !
बहुत खुशहाल हूं मैं आज 'रेखा',
कोइ शिकवा नहीं है जिन्दगी से !
--रेखा अग्रवाल
ग़ज़लः सौजन्य श्री अशोक खाचर के ब्लाग से
Sunday, April 21, 2013
हार कर भी मुस्कराता रहा इक तुझ पे अकीदा रखकर............'आबिद'
किस गुनाह की सजा में मुब्तिला हूँ मैं ...
तेरे इंम्तिहान देख, बहुत अदना हूँ मैं ...
तेरे इंम्तिहान देख, बहुत अदना हूँ मैं ...
बारहां कोशिशे मेरी नाकाम हुए जाती हैं
तलब में आंसू लिए तकती निगाह हूँ मैं ...
इक हसरत भरी नज़र हैं मेरे अपनों की मुझसे
मैं क्या जवाब दूँ उन्हें, के क्या हूँ मैं ...
क्या ख्वाबो की कीमत तिल-तिल कर मरना हैं
जंग हार गया हूँ तो फिर क्यूँ जिन्दा हूँ मैं ...
माना मेरी दुआओ में असर नहीं फिर भी लेकिन
किसी का आसरा हूँ तो किसी का हौसला हूँ मैं ...
हार कर भी मुस्कराता रहा इक तुझ पे अकीदा रखकर
ए अल्लाह, कैसा भी सही आखिर तेरा बन्दा हूँ मैं
----'आबिद'
नाम से भी मेरे नफ़रत है उसे................मनु भारद्वाज "मनु"
नाम से भी मेरे नफ़रत है उसे
मुझसे इस दर्जा मुहब्बत है उसे
मुझसे इस दर्जा मुहब्बत है उसे
... मुझको जीने भी नहीं देता वो
मेरे मरने की भी हसरत है उसे
रूठ जाऊँ तो मानता है बहुत
फिर भी तड़पाने की आदत है उसे
उसको देखूँ मैं बंद आँखों से
गैरमुमकिन सी ये चाहत है उसे
जब भी चाहे वो सता लेता है
ज़ुल्म ढाने की इजाज़त है उसे
वो 'मनु' पे है जाँ-निसार बहुत
और 'मनु' से ही हिक़ारत है उसे
-मनु भारद्वाज "मनु"
Saturday, April 20, 2013
कसमसाता बदन रहा मेरा..........देवी नागरानी
कसमसाता बदन रहा मेरा
चूम दामन गई हवा मेरा
मुझको लूटा है बस खिज़ाओं ने
गुले दिल है हरा भरा मेरा
तन्हा मैं हूँ, तन्हा राहें भी
साथ तन्हाइयों से रहा मेरा
खोई हूँ इस कद्र ज़माने में
पूछती सबसे हूँ पता मेरा
आईना क्यों कुरूप इतना है
देख उसे अक्स डर रहा मेरा
मेरी परछाई मेरे दम से है
साया उसका, कभी बड़ा मेरा
मैं अंधेरों से आ गया बाहर
जब से दिल और घर जला मेरा
जिसने भी दी दुआ मुझे देवी
काम आसान अब हुआ मेरा
Friday, April 19, 2013
कि जैसे बेवा कोई डरती है सिन्दूरदानी से ...............सचिन अग्रवाल "तन्हा"
ज़रूरी है किनारा कर लो अब इस बदगुमानी से
ये वो लपटें नहीं बुझ जाया करती हैं जो पानी से .........
मुहब्बत, बेवफाई, मयकशी, तन्हाई, रुसवाई
बहुत आसान लगता था निपट लेना जवानी से ..............
...
कहाँ से लाऊं मैं सोने की चिड़िया, दूध की नदियाँ
कि अब बच्चे बहलते ही नहीं किस्से कहानी से.............
अब उसके वास्ते सहराओं में कोई जगह ढूंढो
वो एक बूढा जो आजिज़ आ गया है बागबानी से ...................
दिया,जुगनू,सितारे,चाँद,सब मिलकर बहुत रोये
उजालों का जो हमने जिक्र छेड़ा रातरानी से ..........
"चिरागों जैसा घर रौशन है बेटों से" ये एक जुमला
वो सुनती आई है दादी से,माँ से और नानी से ...........
अब अपने आप से कुछ इस क़दर डरने लगे हैं हम
कि जैसे बेवा कोई डरती है सिन्दूरदानी से ...............
-सचिन अग्रवाल "तन्हा"
ये वो लपटें नहीं बुझ जाया करती हैं जो पानी से .........
मुहब्बत, बेवफाई, मयकशी, तन्हाई, रुसवाई
बहुत आसान लगता था निपट लेना जवानी से ..............
...
कहाँ से लाऊं मैं सोने की चिड़िया, दूध की नदियाँ
कि अब बच्चे बहलते ही नहीं किस्से कहानी से.............
अब उसके वास्ते सहराओं में कोई जगह ढूंढो
वो एक बूढा जो आजिज़ आ गया है बागबानी से ...................
दिया,जुगनू,सितारे,चाँद,सब मिलकर बहुत रोये
उजालों का जो हमने जिक्र छेड़ा रातरानी से ..........
"चिरागों जैसा घर रौशन है बेटों से" ये एक जुमला
वो सुनती आई है दादी से,माँ से और नानी से ...........
अब अपने आप से कुछ इस क़दर डरने लगे हैं हम
कि जैसे बेवा कोई डरती है सिन्दूरदानी से ...............
-सचिन अग्रवाल "तन्हा"
ये चीज़ बेशकीमती ... मेरे हाथ लग गई.................अमित हर्ष
रफ्ता रफ्ता .. किनारे रात लग गई
सोचते सोचते ...... आँख लग गई
गुफ्तगू में कहीं ...... ज़िक्र भी नहीं
बुरी बहुत उन्हें .. वो बात लग गई
...
बताने पे आमादा थे .. रह रहकर अपनी
मालूम उन्हें भी .. मेरी औकात लग गई
कम न थे ऐब .... और अब शायरी भी
क्या क्या तोहमद .. मेरे साथ लग गई
अब न गुजरेंगे गलियों से .. गुज़रे पलों की
सोच रहे थे कि ... यादों की बरात लग गई
ज़माना ही बतायेगा मोल .... शायरी का
ये चीज़ बेशकीमती ... मेरे हाथ लग गई
----अमित हर्ष
हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है......चरण लाल
आपने चाँद सितारों पर ग़ज़ल लिखी है
हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने फूल और कलियों के कदम चूमे हैं
हमने उजड़े हुए खारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने शहर को आदर्श बनाया अपना
हमने गाँव के बेचारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने सागर के उफनते हुए यौवन को सराहा
हमने तो शांत किनारों पर ग़ज़ल लिखी है
खा रहे नोच कर इंसान की बोटी जो "चरण"
आपने उन गुनाहगारों पर ग़ज़ल लिखी है
जिनकी आदत है हँसीं जिस्म का सौदा करना
आपने उनके इशारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है
आपका ध्यान है धनवान की डोली की तरफ
हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है
मेरी गजलों में यह पैनापन क्यों
क्योंकि तलवार की धारों पर ग़ज़ल लिखी है .
"चरण"
हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने फूल और कलियों के कदम चूमे हैं
हमने उजड़े हुए खारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने शहर को आदर्श बनाया अपना
हमने गाँव के बेचारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने सागर के उफनते हुए यौवन को सराहा
हमने तो शांत किनारों पर ग़ज़ल लिखी है
खा रहे नोच कर इंसान की बोटी जो "चरण"
आपने उन गुनाहगारों पर ग़ज़ल लिखी है
जिनकी आदत है हँसीं जिस्म का सौदा करना
आपने उनके इशारों पर ग़ज़ल लिखी है
आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है
आपका ध्यान है धनवान की डोली की तरफ
हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है
मेरी गजलों में यह पैनापन क्यों
क्योंकि तलवार की धारों पर ग़ज़ल लिखी है .
"चरण"
Wednesday, April 17, 2013
इंसानियत चाहे हर इंसान...............................मंजूषा हांडा
शर्म से भी ज्यादा आज आई शर्म
हर इंसान बैठा है आंखें मीचे
कैसे कहें नेक कौम हैं हम
कोई तो इस बात का जरा खुलासा कीजे
............................
भयानक सन्नाटों की चीखें
आत्मा को झकझोर रही हैं
हर ओर की बेबसी से
खून के अश्कों में कई रूहें डूब रही हैं
..............................
शैतानों की बेजा हरक़त ने
ज़माने को बेज़ार किया
अब तो मां के पहलू में भी पनाह
पाने का हक इन दरिंदों ने गंवा दिया
..................................
गम-ए-जमाना यह
खुला जख्म खून बहा रहा है
पर इस नासूर को भरने वाला
कहीं मिलता नहीं है
...............................
सुनहरी धूप है
पर चेहरा बादलों से घिरा है
गर्द-ए-राह ने सूरज का
साथ चूर-चूर किया है
...................................
खुरदरी हवाओं ने
सावन को ऐसा झुलसा दिया
आस्मानी रोशनी ने भी अब
गर्म लू बरसाने का फैसला किया
................................
इन मायूसियों को क्या नाम दें
बे-नाम ही रहने दो
शायद ख्वाहिशों की भीड़ में
गुम हो जाएं यों
.....................................
माना, इंसानी जिंदगी के तजुर्बों में
गिले-शिकवे कै़द रहते हैं
पर इन्हीं तजुर्बों के खौफ से
कई आगोषे तस्सवुरफना होते हैं
........................
आज तन्हा वो बहुत
टूटा मासूस-सा ख्वाह जिसका है
बेजार जमाने की हकीकत ने
एक और मासूमियत की कत्ल किया है
................................
मगर हौस्ला अफ़जाई कर
जिगर-ओ-नस के इस सफ़र पर
मर-मर के जीना सीखा दिया
एहसानात कई खुदा के
जिगर देके इस माहौल में भी
आरजुओं का सिलसिला चलने दिया
.......................
लेकिन आरजुओं के इस जोश में
तुम यह न भूल जाना
बड़बड़ाना हमारी फितरत है
पर है तो यह बे-खयाली ही ना
....................................
और ख़याल हैं जो निर्माण करें
वही है हमारी हकीकत जो
पर शब्दों का चुनाव ही
उजागर करे हकीकत को
....................
फिर यह भी सही, ख्यालों और
हकीकत का तालमेल मुश्किल बहुत
और इनके दर्मियां जो खला है
वोह सस्ती बहुत
..................
इस खला को हटाने का
चैन बहुत महंगा बिकता है
अब तो हर पल यही
तालमेल हासिल करने के
इंतजार में निकलता है
................
और वक्त ने भी अफसानों की तह को
अभी नहीं है खोला पूरा
इसी में सचाई जाने कितनी जीत और
आजमाइशें हैं बाकी हैं वक्त के पहलू में समाई
चलो यही सही, आओ बक्शे
बीते कल के जख्म-ओ-निशान मिलके भरते हैं
पुरानी यादें बदल के आने वाले कल को
सुनहरा बनाने की जद्दोजहद में लगते हैं
...............
दुरुस्त यही, नाकामी छू नहीं सकती
फकत रहेंगे बुर्दबार हम
इंसानियत को सुनहरे अक्षरों में
लिखने का बेसबरी से करेंगे इंतजार
..................................
यूं ही रहेंगे इन्हीं इरादों के आसपास हम
के इसी को हौसला-ए-बुलंदी कहते हैं
हम इन्हीं इरादों के उजालों में
उम्मीदों का सामान जुटाते रहते हैं।
..................................................
---मंजूषा हांडा
(एन.आर.आई.साहित्य से)
(एन.आर.आई.साहित्य से)
Sunday, April 14, 2013
कविता के अन्दर कविताएँ.......मोनिका जैन "पंछी "
माँ मैं कुछ कहना चाहती हूँ
माँ मैं भी जीना चाहती हूँ
तेरे आँगन की बगिया में
पायल की छमछम करती माँ
चाहती मैं भी चलना
तेरी आँखों का तारा बन
चाहती झिलमिल करना
तेरी सखी सहेली बन माँ
चाहती बाते करना
तेरे आँगन की बन तुलसी
मान तेरे घर का बन माँ
चाहती मैं भी पढ़ना
हाथ बँटाकर काम में तेरे
चाहती हूँ कम करना
तेरे दिल के प्यार का गागर
चाहती मैं भी भरना
मिश्री से मीठे बोल बोलकर
चाहती मैं हूँ गाना
तेरे प्यार दुलार की छाया
चाहती मैं भी पाना
चहक-चहक कर चिड़ियाँ सी
चाहती मैं हूँ उड़ना
महक-महक कर फूलों सी
Monika Jain 'पंछी'
http://www.hindithoughts.com/2012/07/poem-on-save-girl-child-in-hindi.html
मां की अभिलाषा..................रेखा भाटिया
उड़ जा, उड़ जा,
खुल जा, खुल जा,
नए पंख तू लगा,
उड़ जा उस जहान में,
जहां मंजिल करे तेरा इंतजार,
नए रंग तू सजा,
नये जहान में तू जा,
अब रोक ना पाए कोई तुझे,
जा नई दुनिया तू सजा,
जहां तेरा मान हो सम्मान हो,
तेरी अपनी एक पहचान हो,
उड़ जा, उड़ जा,
भर सपनों में नई दिशा,
ऊर्जावान हो,शक्तिवान हो,
निर्भय और निर्विकार हो,
कलि से फूल बनकर,
नए रास्तों को चुन,
रख नींव एक नए जहान की,
जहां सर उठाकर पड़े तेरा हर कदम,
उड़ जा, उड़ जा,
भर सपनों में नई दिशा,
खुल जा. .. खुल जा,
नए पंख तू सजा,
अब अपमान बहुत है सह लिया,
भर ऊर्जा आत्मविश्वास की,
मेरी नन्ही परी धर नया अवतार,
बनकर दैवी शक्ति रूप,
पटक कदमों में सारे असुरों को,
सभी को नई राह तू दिखा,
यही है इस मां की अभिलाषा,
उड़ जा, उड़ जा,
भर सपनों में नई दिशा,
खुल जा, खुल जा,
नई रोशनी तू जला
नए पंख तू लगा....
- रेखा भाटिया
अब मुझको दहलाना मत...............प्रीति सुराना
जानू मैं तेरी बातें सब,
बातों से बहलाना मत,..
बातों ही बातों में अब,
प्यार कभी जतलाना मत,..
...
मीठी मीठी बातें करके,
दिल मेरा धड़काना मत,..
दिल में दबे अरमान कई,
अब उनको बहकाना मत,..
रोना नही है अब मुझको,
अश्क मेरे छलकाना मत,..
दर्द मेरे सब तुझको पता है,
ये लोगों में झलकाना मत,..
दूर कहीं जाने की वजहें
मुझको तू बतलाना मत,..
तुझको खो देने के डर से,
अब मुझको दहलाना मत,..
टूट जाते है ख्वाब मेरे सब,
नए ख्वाब दिखलाना मत,..
और नए जो ख्वाब सजाए,
तो अब उनको बिखराना मत,...
--प्रीति सुराना
जानू मैं तेरी बातें सब,
बातों से बहलाना मत,..
बातों ही बातों में अब,
प्यार कभी जतलाना मत,..
...
मीठी मीठी बातें करके,
दिल मेरा धड़काना मत,..
दिल में दबे अरमान कई,
अब उनको बहकाना मत,..
रोना नही है अब मुझको,
अश्क मेरे छलकाना मत,..
दर्द मेरे सब तुझको पता है,
ये लोगों में झलकाना मत,..
दूर कहीं जाने की वजहें
मुझको तू बतलाना मत,..
तुझको खो देने के डर से,
अब मुझको दहलाना मत,..
टूट जाते है ख्वाब मेरे सब,
नए ख्वाब दिखलाना मत,..
और नए जो ख्वाब सजाए,
तो अब उनको बिखराना मत,...
बातों से बहलाना मत,..
बातों ही बातों में अब,
प्यार कभी जतलाना मत,..
...
मीठी मीठी बातें करके,
दिल मेरा धड़काना मत,..
दिल में दबे अरमान कई,
अब उनको बहकाना मत,..
रोना नही है अब मुझको,
अश्क मेरे छलकाना मत,..
दर्द मेरे सब तुझको पता है,
ये लोगों में झलकाना मत,..
दूर कहीं जाने की वजहें
मुझको तू बतलाना मत,..
तुझको खो देने के डर से,
अब मुझको दहलाना मत,..
टूट जाते है ख्वाब मेरे सब,
नए ख्वाब दिखलाना मत,..
और नए जो ख्वाब सजाए,
तो अब उनको बिखराना मत,...
--प्रीति सुराना
Saturday, April 13, 2013
मिलेगी बेवफ़ा से पर ज़फ़ा अक्सर...............सतपाल ख्याल
वो आ जाए, ख़ुदा से की दुआ अक्सर
वो आया तो, परेशाँ भी रहा अक्सर
ये तनहाई ,ये मायूसी , ये बेचैनी
चलेगा कब तलक, ये सिलसिला अक्सर
न इसका रास्ता कोई ,न मंजिल है
‘महब्बत है यही’ सबने कहा अक्सर
चलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
मिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
वो ख़ामोशी वही दुख है वही मैं हूँ
तेरे बारे में ही सोचा किया अक्सर
ये मुमकिन है कि पत्थर में ख़ुदा मिल जाए
मिलेगी बेवफ़ा से पर ज़फ़ा अक्सर
सतपाल ख्याल
Friday, April 12, 2013
कविताओं-कहानियों से हट कर कुछ कलाकारी......सौजन्य कूल फन क्लब
Intricate Sculptures Carved from a Single Pencil
और 'मनु' से ही हिक़ारत है उसे..............मनु भारद्वाज 'मनु'
नाम से भी मेरे नफ़रत है उसे
मुझसे इस दर्जा मुहब्बत है उसे
... मुझको जीने भी नहीं देता वो
मेरे मरने की भी हसरत है उसे
रूठ जाऊँ तो मानता है बहुत
फिर भी तड़पाने की आदत है उसे
उसको देखूँ मैं बंद आँखों से
गैरमुमकिन सी ये चाहत है उसे
जब भी चाहे वो सता लेता है
ज़ुल्म ढाने की इजाज़त है उसे
वो 'मनु' पे है जाँ-निसार बहुत
और 'मनु' से ही हिक़ारत है उसे
-मनु भारद्वाज 'मनु'
Thursday, April 11, 2013
निधि टण्डन की दो लाइने....फेसबुक से
यूँ तो ज़िंदगी के सारे सबक जुबानी याद हैं मुझे
जब तुम सामने आते हो तो सब भूल जाता हूँ मैं
तुमसे जुदा होकर यूँ बिखर गयी मैं
समेटने की न ताक़त न चाहत बाक़ी
तुमने चूमा था जब पेशानी को मेरी
रंगत होठों की लवों तक उतर आयी थी
बारीक़ सा फ़ासला तफ़सील से निभाया उसने
जो मैंने नहीं चाहा था वही कर दिखाया उसने
ज़िंदगी के वो तमाम पहलू जिनमें तुम शामिल नहीं हो
मैं अलग हो गयी उनसे या उन्हें खुद से जुदा कर दिया
निधि टण्डन की दो लाइने....फेसबुक से
बहन निधि की दो लाईने भी होश उड़ा देती है कभी-कभी
बहन निधि की दो लाईने भी होश उड़ा देती है कभी-कभी
शहर में जिस तरह कर्फ्यू लगा हो............सुरेन्द्र चतुर्वेदी
लरज़ती धूप में पेड़ों के साये,
ग़ज़ल मेंहदी हसन जैसे सुनाये.
हसरतें यूँ हुईं अपनी की जैसे,
नशेमन से कोई चूल्हा जलाये.
ग़मों का बोझ ढोया इस तरह भी,
पिता बेटे की ज्यों मय्यत उठाये.
हमारी नींद में ख़्वाबों का बच्चा,
पतंगे दर्द की छत पर उडाये.
शहर में जिस तरह कर्फ्यू लगा हो,
किसी की याद में दिन यूँ बिताये.
हैं दिल के सामने हालात ऐसे,
ये मुमकिन है समंदर सूख जाये.
--सुरेन्द्र चतुर्वेदी
ग़ज़ल मेंहदी हसन जैसे सुनाये.
हसरतें यूँ हुईं अपनी की जैसे,
नशेमन से कोई चूल्हा जलाये.
ग़मों का बोझ ढोया इस तरह भी,
पिता बेटे की ज्यों मय्यत उठाये.
हमारी नींद में ख़्वाबों का बच्चा,
पतंगे दर्द की छत पर उडाये.
शहर में जिस तरह कर्फ्यू लगा हो,
किसी की याद में दिन यूँ बिताये.
हैं दिल के सामने हालात ऐसे,
ये मुमकिन है समंदर सूख जाये.
--सुरेन्द्र चतुर्वेदी
Tuesday, April 9, 2013
क़ज़ा जब मेरा पता पूछने आई ...........नीलू प्रेम
जाने कितने ख़त लिखे मैंने तेरी याद में
एक तू है जिसे पढने की फुर्सत नहीं है
एक अरशा हो गया तेरा शहर छोड़े हुए
और तुझे खबर लेने की फुर्सत नहीं है
जालिम ना कहूँ तो क्या कहूँ तुझे
रफाकत करता है निभाने की फुर्सत नहीं है
दोस्ती मेरी जैसी ना मिलेगी जमाने में तुझे
मै हर फर्ज अदा करती हूँ तू कह फुर्सत नहीं है
क़ज़ा जब मेरा पता पूछने आई ,उसने कहा
वो "प्रेम" है मेरी तू जा अभी,अभी फुर्सत नहीं है
एक तू है जिसे पढने की फुर्सत नहीं है
एक अरशा हो गया तेरा शहर छोड़े हुए
और तुझे खबर लेने की फुर्सत नहीं है
जालिम ना कहूँ तो क्या कहूँ तुझे
रफाकत करता है निभाने की फुर्सत नहीं है
दोस्ती मेरी जैसी ना मिलेगी जमाने में तुझे
मै हर फर्ज अदा करती हूँ तू कह फुर्सत नहीं है
क़ज़ा जब मेरा पता पूछने आई ,उसने कहा
वो "प्रेम" है मेरी तू जा अभी,अभी फुर्सत नहीं है
neelu.prem@facebook.com
Monday, April 8, 2013
हिन्दी का गला घुट रहा है!....................... महावीर शर्मा
अंग्रेज़ी-पुच्छलतारे
नुमा व्यक्ति जब बातचीत में हिन्दी के शब्दों के अंत में जानबूझ कर व्यर्थ
में ही 'आ' की पूंछ लगा कर उसका सौंदर्य नष्ट कर देते हैं, जब जी टीवी
द्वारा इंग्लैंड में आयोजित एक सजीव कार्यक्रम में जहां लगभग 100
हिन्दी-भाषी वाद-विवाद में भाग ले रहे हों और एक हिन्दू भारतीय प्रौढ़
सज्जन जब गर्व से सिर उठा कर 'हवन कुंड' को 'हवना कुंडा' कह रहा हो तो
हिन्दी भाषा कराहने लगती है, उसका गला घुटने लगता है।
यह ठीक है कि अधिकांश कार्यवाही अंग्रेजी में ही चल रही थी किंतु अंग्रेजी में बोलने का अर्थ यह नहीं है कि उन्हें हिन्दी शब्दों को कुरूप बना देने का अधिकार मिल गया हो। वे यह भी नहीं सोचते कि इस प्रकार विकृत उच्चारण से शब्दों के अर्थ और भाव तक बदल जाते हैं। 'कुंड' और 'कुंडा' दोनों शब्द भिन्न संज्ञा के द्योतक हैं।
श्रीमान, सुना है यहां एक संस्था या केंद्र है जहां योग की शिक्षा दी जाती है, आप बताने का कष्ट करेंगे कि कहां है?' 'आपका मतलब है योगा-सेंटर?' महाशय ने तपाक से अंग्रेजी-कूप में से मंडूक की तरह उचक कर 'योग' शब्द का अंग्रेजीकरण कर 'योगा' बना डाला। यह बात थी दिल्ली के करौल बाग क्षेत्र की।
यह मैं मानता हूं कि रोमन लिपि में अहिन्दी भाषियों के हिन्दी शब्दों के उच्चारण में त्रुटियां आना स्वाभाविक है, किन्तु हिन्दी-भाषी लोगों का हमारी राष्ट्र-भाषा के प्रति कर्तव्य है कि जानबूझ कर भाषा का मुख मलिन ना हो। यदि हम उन शब्दों को अंग्रेज लोगों के सामने उन्हीं का अनुसरण ना करके शब्दों का शुद्ध उच्चारण करें तो वे लोग स्वतः ही ठीक उच्चारण करके आपका धन्यवाद भी करेंगे। यह मेरा अपना निजी अनुभव है। कुछ निजी अनुभव यहां देने असंगत नहीं होंगे और आप स्वयं निर्णय कीजिए कि हम हिन्दी शब्दों के अंग्रेजीकरण उच्चारण में क्यों गर्वित होते हैं।
मैं इंग्लैंड के एक छोटे से नगर में एक स्कूल में अध्यापन-कार्य करता था। उसी स्कूल में सांयकाल के समय बड़ी आयु के लोगों के लिए भी कुछ विषयों की सुविधा थी। अन्य विषयों के साथ योगाभ्यास की कक्षा भी चलती थीं जो हम भारतीयों के लिये बड़े गर्व की बात थी। यद्यपि मेरा उस विभाग से संबंध नहीं था पर उसके प्रिंसिपल मुझे अच्छी तरह जानते थे।
योग की कक्षाएं एक भारतीय शिक्षक लेते थे जिन्होंने हिन्दी-भाषी उत्तर प्रदेश में ही शिक्षा प्राप्त की थी, हठयोग का बहुत अच्छा ज्ञान था। मुझे भी हठयोग में रुचि थी, इसीलिए उनसे अच्छी जान-पहचान हो गई थी। एक बार उन्हें किसी कारण एक सप्ताह के लिए कहीं जाना पड़ा तो प्रिंसिपल ने पूछा कि मैं यदि एक सप्ताह के लिए योग की कक्षा ले सकूं। पांच दिन के लिए दो घंटे प्रतिदिन की बात थी। मैंने स्वीकार कर कार्य आरम्भ कर दिया। 20 मिली जुली आयु के अंग्रेज पुरुष और स्त्रियां थीं।
परिचय देने के पश्चात एक प्रौढ़ महिला ने पूछा, ' आज आप कौन सा 'असाना' सिखायेंगे?' मैं मुस्कुराया और बताया कि इसका सही उच्चारण असाना नहीं, 'आसन' कहें तो अच्छा लगेगा।' उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ, कहने लगीं, 'मिस्टर आ. ने तो ऐसा कभी भी नहीं कहा। वे तो सदैव 'असाना' ही कहा करते थे।'
मैंने यह कहकर बात समाप्त कर दी कि हो सकता है मि. आ. ने आप लोगों की सुगमता के लिए ऐसा कह दिया होगा। महिला ने शब्द को सुधारने के लिए कई बार धन्यवाद किया। मूल कार्य के साथ जितने भी आसन,मुद्राएं और क्रियाएं उन्होंने श्री आ. के साथ सीखी थीं, उनके सही उच्चारण भी सुधारता गया। प्रसन्नता की बात यह थी कि वे लोग हिन्दी के उच्चारण बिना किसी कठिनाई के बोल सकते थे। 'त' और 'द' बोलने में उन्हें आपत्ति अवश्य थी जिसको पचाने में कोई आपत्ति नहीं थी। जब श्री आ. वापस आकर अपने विद्यार्थियों से मिले तो अगले दिन मुझे मिलने आए और हंसते हुए कहने लगे,'यह कार्य तो मुझे आरम्भ में ही कर देना चाहिए था। इसके लिए धन्यवाद!'
श्री अर्जुन वर्मा हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता हैं। गीता तो ऐसा लगता है जैसे सारे 18 अध्याय कण्ठस्थ हों। लंदन की एक हिन्दू-संस्था के एक विशेष कार्यक्रम के अवसर पर 'श्रीमद्भगवद्गीता' पर भाषण दे रहे थे। भारतीय, अंग्रेज और यहां तक कि ईरान के एक मुस्लिम दंपत्ति भी श्रोताओं में उपस्थित थे। स्वाभाविक है, अंग्रेज़ी भाषा में ही बोलना उपयुक्त था।
'माई नेम इज़ अर्जुन वर्मा.....'. गीता के विषयों की चर्चा करते हुए सारे पात्र अर्जुना, भीमा, नकुला, कृश्ना, दुर्योधना, भीष्मा, सहदेवा आदि बन गए। विडम्बना यह है कि वे स्वयं अर्जुन ही रहे और गीता के अर्जुन 'अर्जुना' बन गए। बाद में जब भोजन के समय अकेले में मैंने इस बात पर संक्षिप्त रूप से उनका ध्यान आकर्षित किया तो कहने लगे 'ये लोग गीता अंग्रेज़ी में पढ़ते हैं तो उनके साथ ऐसा ही बोलना पड़ता है। 'मैंने कहा,'वर्मा जी आप तो संस्कृत और हिन्दी में ही पढ़ते हैं।' वर्मा जी ने हंसते हुए यह कहकर बात समाप्त कर दी,' मैं आपकी बात पूर्णतयः समझ रहा हूं, मैं आपकी बात को ध्यान में रखूंगा।'
अपने एक मित्र का यह उदाहरण अवश्य देना चाहूंगा। बात, फिर वही लंदन की है। आप जानते ही हैं कि 'हरे कृष्ण' मंदिर विश्व के कोने कोने में मिलेंगे जिनका सारा कार्य-भार विभिन्न देशों के कृष्ण-भक्तों ने सम्भाला हुआ है। गौर वर्ण के लोग भी अपनी पूरी सामर्थ्यानुसार अपना योग दे रहे हैं। मेरे मित्र (नाम आगे चलकर पता लग जाएगा) इस मंदिर में प्रवचन सुनकर आए थे। मैंने पूछा, ' भई आज किस विषय पर चर्चा हो रही थी। हमें भी इस ज्ञान-गंगा में यहीं पर गोता लगवा दो।' कहने लगे,'आज सूटा के विषय में ,...' मैंने बीच में ही रोक कर पूछा,'भई, यह सूटा कौन है?' कहने लगे,'अरे वही, तुम तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे जानते ही नहीं।
दिल्ली में मेरी माता जी जब हर माह श्री सत्यनारायण की कथा करवातीं थी, तुम हमेशा आकर सुनते थे। कथा के पहले ही अध्याय में सूटा ही तो...' मैंने फिर रोक कर उनकी बात टोक दी, 'अच्छा, तुम श्री सूत जी की बात कर रहे हो!' फिर अपनी बात सम्भालते हुए कहने लगे, 'यार, ये अंग्रेज़ लोग उन्हें सूटा ही कहते हैं।' मैंने फिर कहा,' देखो, तुम्हारा नाम 'अरुण' है, यदि कोई तुम्हारे नाम में 'आ' लगा कर 'अरुणा' कहे तो यह पसंद नहीं करोगे कि कोई किसी अन्य व्यक्ति के सामने तुम्हारे नाम को इस प्रकार बिगाड़ा जाए, तुम्हें 'नर' से 'नारी' बना दे। तुम उसी समय अपने नाम का सही उच्चारण करके सुधार देंगे।' यह तो मैं नहीं कह सकता कि अरुण को मेरी बात अच्छी लगी या बुरी किंतु वह चुप ही रहे।
मैंने कहीं भी रोमन अंग्रेजी लिपि में या अंग्रेजी लेख आदि में मुस्लिम पैगम्बर और पीर आदि के नामों के विकृत रूप नहीं देखे। कहीं भी हज़रत मुहम्मद की जगह 'हज़रता मुहम्मदा' या ‘रसूल’ की जगह ‘रसूला’नहीं देखा गया। मुस्लिम व्यक्ति की तो बात ही नहीं, किसी पाश्चात्य गौर वर्ण के व्यक्ति तक को ‘मुहम्मदा’ या ‘रसूला’ बोलते नहीं सुना।
कारण यह है कि कोई उनके पीर, पैगम्बर के नामों को विकृत करके मुंह खोलने वाले का मुंह टेढ़ा-मेढ़ा होने से पहले ही सीधा कर देते हैं। कभी मैं सोचता हूं, ऐसा तो नहीं कि एक दीर्घ काल तक गुलामी सह सह कर हमारे मस्तिष्क को हीनता के भाव ने यहां तक जकड़ लिया है कि कभी यदि वेदों पर चर्चा होती है तो 'मैक्समुलर' के ऋग्वेद के अनुवाद के उदाहरण देने में ही अपनी शान समझते हैं।
फिल्मी कलाकार, निर्माता, निर्देशक, नेता आदि यहां तक कि जब वे भारतीयों के लिए भी किसी वार्ता में दिखाई देते हैं, तो हिन्दी में बोलना अपनी शान में धब्बा समझते हैं। ऐसा लगता है कि उर्दू या हिन्दी तो उनके लिए किसी सुदूर अनभिज्ञ देश की भाषा है। यह देखा जा रहा है कि हर क्षेत्र में व्यक्ति जैसे जैसे अपने कार्य में सफलता प्राप्त करके ख्याति के शिखर के समीप आ जाता है, उसे अपनी मां को मां कहने में लज्जा आने लगती है।
भारत में बी.बी.सी. संवाददाता पद्म भूषण सम्मानित सर मार्क टली एक वरिष्ट पत्रकार हैं। उन्हें उर्दू और हिन्दी का अच्छा ज्ञान है। भारतीयों का हिन्दी भाषा के प्रति उदासीनता का व्यवहार देख कर उन्होंने कहा था,'... जो बात मुझे अखरती है वह है भारतीय भाषाओं के ऊपर अंग्रेजी का विराजमान! क्योंकि मुझे यकीन है कि बिना भारतीय भाषाओं के 'भारतीय संस्कृति' जिंदा नहीं रह सकती। दिल्ली में जहां रहता हूं, उसके आसपास अंग्रेजी पुस्तकों की तो दर्जनों दुकानें हैं, हिन्दी की एक भी नहीं।
हकीकत तो यह है कि दिल्ली में मुश्किल से ही हिन्दी पुस्तकों की कोई दुकान मिलेगी।' लज्जा आती है कि एक विदेशी के मुख से ऐसी बात सुनकर भी ख्याति के शिखर की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए सफलकारों के कान में जूं भी नहीं रेंगती। लोग कहते हैं कि हमारे नेता दूसरे देशों में भाषण देते हुए अंग्रेजी का प्रयोग इसलिए करते हैं क्योंकि वहां के लोग हिन्दी नहीं जानते।
मैं यही कहूंगा कि रूस के व्लाडिमिर पूतिन, फ्रांस के निकोलस सरकोजी, चीन के ह्यू जिन्ताओ और जर्मनी के होर्स्ट कोलर आदि कितने ही देशों के नेता जब भी दूसरे देशों में जाते हैं तो गर्व से भाषांतरकार को मध्य रख अपनी ही भाषा में बातचीत करते हैं। ऐसा नहीं है कि ये लोग अंग्रेजी से अनभिज्ञ हैं किंतु उनकी अपनी भाषा का भी अस्तित्व है।
यह ठीक है कि अधिकांश कार्यवाही अंग्रेजी में ही चल रही थी किंतु अंग्रेजी में बोलने का अर्थ यह नहीं है कि उन्हें हिन्दी शब्दों को कुरूप बना देने का अधिकार मिल गया हो। वे यह भी नहीं सोचते कि इस प्रकार विकृत उच्चारण से शब्दों के अर्थ और भाव तक बदल जाते हैं। 'कुंड' और 'कुंडा' दोनों शब्द भिन्न संज्ञा के द्योतक हैं।
श्रीमान, सुना है यहां एक संस्था या केंद्र है जहां योग की शिक्षा दी जाती है, आप बताने का कष्ट करेंगे कि कहां है?' 'आपका मतलब है योगा-सेंटर?' महाशय ने तपाक से अंग्रेजी-कूप में से मंडूक की तरह उचक कर 'योग' शब्द का अंग्रेजीकरण कर 'योगा' बना डाला। यह बात थी दिल्ली के करौल बाग क्षेत्र की।
यह मैं मानता हूं कि रोमन लिपि में अहिन्दी भाषियों के हिन्दी शब्दों के उच्चारण में त्रुटियां आना स्वाभाविक है, किन्तु हिन्दी-भाषी लोगों का हमारी राष्ट्र-भाषा के प्रति कर्तव्य है कि जानबूझ कर भाषा का मुख मलिन ना हो। यदि हम उन शब्दों को अंग्रेज लोगों के सामने उन्हीं का अनुसरण ना करके शब्दों का शुद्ध उच्चारण करें तो वे लोग स्वतः ही ठीक उच्चारण करके आपका धन्यवाद भी करेंगे। यह मेरा अपना निजी अनुभव है। कुछ निजी अनुभव यहां देने असंगत नहीं होंगे और आप स्वयं निर्णय कीजिए कि हम हिन्दी शब्दों के अंग्रेजीकरण उच्चारण में क्यों गर्वित होते हैं।
मैं इंग्लैंड के एक छोटे से नगर में एक स्कूल में अध्यापन-कार्य करता था। उसी स्कूल में सांयकाल के समय बड़ी आयु के लोगों के लिए भी कुछ विषयों की सुविधा थी। अन्य विषयों के साथ योगाभ्यास की कक्षा भी चलती थीं जो हम भारतीयों के लिये बड़े गर्व की बात थी। यद्यपि मेरा उस विभाग से संबंध नहीं था पर उसके प्रिंसिपल मुझे अच्छी तरह जानते थे।
योग की कक्षाएं एक भारतीय शिक्षक लेते थे जिन्होंने हिन्दी-भाषी उत्तर प्रदेश में ही शिक्षा प्राप्त की थी, हठयोग का बहुत अच्छा ज्ञान था। मुझे भी हठयोग में रुचि थी, इसीलिए उनसे अच्छी जान-पहचान हो गई थी। एक बार उन्हें किसी कारण एक सप्ताह के लिए कहीं जाना पड़ा तो प्रिंसिपल ने पूछा कि मैं यदि एक सप्ताह के लिए योग की कक्षा ले सकूं। पांच दिन के लिए दो घंटे प्रतिदिन की बात थी। मैंने स्वीकार कर कार्य आरम्भ कर दिया। 20 मिली जुली आयु के अंग्रेज पुरुष और स्त्रियां थीं।
परिचय देने के पश्चात एक प्रौढ़ महिला ने पूछा, ' आज आप कौन सा 'असाना' सिखायेंगे?' मैं मुस्कुराया और बताया कि इसका सही उच्चारण असाना नहीं, 'आसन' कहें तो अच्छा लगेगा।' उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ, कहने लगीं, 'मिस्टर आ. ने तो ऐसा कभी भी नहीं कहा। वे तो सदैव 'असाना' ही कहा करते थे।'
मैंने यह कहकर बात समाप्त कर दी कि हो सकता है मि. आ. ने आप लोगों की सुगमता के लिए ऐसा कह दिया होगा। महिला ने शब्द को सुधारने के लिए कई बार धन्यवाद किया। मूल कार्य के साथ जितने भी आसन,मुद्राएं और क्रियाएं उन्होंने श्री आ. के साथ सीखी थीं, उनके सही उच्चारण भी सुधारता गया। प्रसन्नता की बात यह थी कि वे लोग हिन्दी के उच्चारण बिना किसी कठिनाई के बोल सकते थे। 'त' और 'द' बोलने में उन्हें आपत्ति अवश्य थी जिसको पचाने में कोई आपत्ति नहीं थी। जब श्री आ. वापस आकर अपने विद्यार्थियों से मिले तो अगले दिन मुझे मिलने आए और हंसते हुए कहने लगे,'यह कार्य तो मुझे आरम्भ में ही कर देना चाहिए था। इसके लिए धन्यवाद!'
श्री अर्जुन वर्मा हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता हैं। गीता तो ऐसा लगता है जैसे सारे 18 अध्याय कण्ठस्थ हों। लंदन की एक हिन्दू-संस्था के एक विशेष कार्यक्रम के अवसर पर 'श्रीमद्भगवद्गीता' पर भाषण दे रहे थे। भारतीय, अंग्रेज और यहां तक कि ईरान के एक मुस्लिम दंपत्ति भी श्रोताओं में उपस्थित थे। स्वाभाविक है, अंग्रेज़ी भाषा में ही बोलना उपयुक्त था।
'माई नेम इज़ अर्जुन वर्मा.....'. गीता के विषयों की चर्चा करते हुए सारे पात्र अर्जुना, भीमा, नकुला, कृश्ना, दुर्योधना, भीष्मा, सहदेवा आदि बन गए। विडम्बना यह है कि वे स्वयं अर्जुन ही रहे और गीता के अर्जुन 'अर्जुना' बन गए। बाद में जब भोजन के समय अकेले में मैंने इस बात पर संक्षिप्त रूप से उनका ध्यान आकर्षित किया तो कहने लगे 'ये लोग गीता अंग्रेज़ी में पढ़ते हैं तो उनके साथ ऐसा ही बोलना पड़ता है। 'मैंने कहा,'वर्मा जी आप तो संस्कृत और हिन्दी में ही पढ़ते हैं।' वर्मा जी ने हंसते हुए यह कहकर बात समाप्त कर दी,' मैं आपकी बात पूर्णतयः समझ रहा हूं, मैं आपकी बात को ध्यान में रखूंगा।'
अपने एक मित्र का यह उदाहरण अवश्य देना चाहूंगा। बात, फिर वही लंदन की है। आप जानते ही हैं कि 'हरे कृष्ण' मंदिर विश्व के कोने कोने में मिलेंगे जिनका सारा कार्य-भार विभिन्न देशों के कृष्ण-भक्तों ने सम्भाला हुआ है। गौर वर्ण के लोग भी अपनी पूरी सामर्थ्यानुसार अपना योग दे रहे हैं। मेरे मित्र (नाम आगे चलकर पता लग जाएगा) इस मंदिर में प्रवचन सुनकर आए थे। मैंने पूछा, ' भई आज किस विषय पर चर्चा हो रही थी। हमें भी इस ज्ञान-गंगा में यहीं पर गोता लगवा दो।' कहने लगे,'आज सूटा के विषय में ,...' मैंने बीच में ही रोक कर पूछा,'भई, यह सूटा कौन है?' कहने लगे,'अरे वही, तुम तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे जानते ही नहीं।
दिल्ली में मेरी माता जी जब हर माह श्री सत्यनारायण की कथा करवातीं थी, तुम हमेशा आकर सुनते थे। कथा के पहले ही अध्याय में सूटा ही तो...' मैंने फिर रोक कर उनकी बात टोक दी, 'अच्छा, तुम श्री सूत जी की बात कर रहे हो!' फिर अपनी बात सम्भालते हुए कहने लगे, 'यार, ये अंग्रेज़ लोग उन्हें सूटा ही कहते हैं।' मैंने फिर कहा,' देखो, तुम्हारा नाम 'अरुण' है, यदि कोई तुम्हारे नाम में 'आ' लगा कर 'अरुणा' कहे तो यह पसंद नहीं करोगे कि कोई किसी अन्य व्यक्ति के सामने तुम्हारे नाम को इस प्रकार बिगाड़ा जाए, तुम्हें 'नर' से 'नारी' बना दे। तुम उसी समय अपने नाम का सही उच्चारण करके सुधार देंगे।' यह तो मैं नहीं कह सकता कि अरुण को मेरी बात अच्छी लगी या बुरी किंतु वह चुप ही रहे।
मैंने कहीं भी रोमन अंग्रेजी लिपि में या अंग्रेजी लेख आदि में मुस्लिम पैगम्बर और पीर आदि के नामों के विकृत रूप नहीं देखे। कहीं भी हज़रत मुहम्मद की जगह 'हज़रता मुहम्मदा' या ‘रसूल’ की जगह ‘रसूला’नहीं देखा गया। मुस्लिम व्यक्ति की तो बात ही नहीं, किसी पाश्चात्य गौर वर्ण के व्यक्ति तक को ‘मुहम्मदा’ या ‘रसूला’ बोलते नहीं सुना।
कारण यह है कि कोई उनके पीर, पैगम्बर के नामों को विकृत करके मुंह खोलने वाले का मुंह टेढ़ा-मेढ़ा होने से पहले ही सीधा कर देते हैं। कभी मैं सोचता हूं, ऐसा तो नहीं कि एक दीर्घ काल तक गुलामी सह सह कर हमारे मस्तिष्क को हीनता के भाव ने यहां तक जकड़ लिया है कि कभी यदि वेदों पर चर्चा होती है तो 'मैक्समुलर' के ऋग्वेद के अनुवाद के उदाहरण देने में ही अपनी शान समझते हैं।
फिल्मी कलाकार, निर्माता, निर्देशक, नेता आदि यहां तक कि जब वे भारतीयों के लिए भी किसी वार्ता में दिखाई देते हैं, तो हिन्दी में बोलना अपनी शान में धब्बा समझते हैं। ऐसा लगता है कि उर्दू या हिन्दी तो उनके लिए किसी सुदूर अनभिज्ञ देश की भाषा है। यह देखा जा रहा है कि हर क्षेत्र में व्यक्ति जैसे जैसे अपने कार्य में सफलता प्राप्त करके ख्याति के शिखर के समीप आ जाता है, उसे अपनी मां को मां कहने में लज्जा आने लगती है।
भारत में बी.बी.सी. संवाददाता पद्म भूषण सम्मानित सर मार्क टली एक वरिष्ट पत्रकार हैं। उन्हें उर्दू और हिन्दी का अच्छा ज्ञान है। भारतीयों का हिन्दी भाषा के प्रति उदासीनता का व्यवहार देख कर उन्होंने कहा था,'... जो बात मुझे अखरती है वह है भारतीय भाषाओं के ऊपर अंग्रेजी का विराजमान! क्योंकि मुझे यकीन है कि बिना भारतीय भाषाओं के 'भारतीय संस्कृति' जिंदा नहीं रह सकती। दिल्ली में जहां रहता हूं, उसके आसपास अंग्रेजी पुस्तकों की तो दर्जनों दुकानें हैं, हिन्दी की एक भी नहीं।
हकीकत तो यह है कि दिल्ली में मुश्किल से ही हिन्दी पुस्तकों की कोई दुकान मिलेगी।' लज्जा आती है कि एक विदेशी के मुख से ऐसी बात सुनकर भी ख्याति के शिखर की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए सफलकारों के कान में जूं भी नहीं रेंगती। लोग कहते हैं कि हमारे नेता दूसरे देशों में भाषण देते हुए अंग्रेजी का प्रयोग इसलिए करते हैं क्योंकि वहां के लोग हिन्दी नहीं जानते।
मैं यही कहूंगा कि रूस के व्लाडिमिर पूतिन, फ्रांस के निकोलस सरकोजी, चीन के ह्यू जिन्ताओ और जर्मनी के होर्स्ट कोलर आदि कितने ही देशों के नेता जब भी दूसरे देशों में जाते हैं तो गर्व से भाषांतरकार को मध्य रख अपनी ही भाषा में बातचीत करते हैं। ऐसा नहीं है कि ये लोग अंग्रेजी से अनभिज्ञ हैं किंतु उनकी अपनी भाषा का भी अस्तित्व है।
धरोहर में प्रकाशित रचना
http://yashoda4.blogspot.in/2011/12/blog-post.html
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा..........कुमार विश्वाश
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा
मैं अपरिमित प्यार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का
कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
ईश को देती चुनौती,
वारती शत-स्वर्ण मोती
अर्चना की शुभ्र ज्योति
मैं तुम्ही पर वार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
तुम कि ज्यों भागीरथी जल
सार जीवन का कोई पल
क्षीर सागर का कमल दल
क्या अनघ उपहार दूँगा
मै तुम्हे अधिकार दूँगा
--कुमार विश्वाश
Thursday, April 4, 2013
शर्म से मर जाऊंगा.................अजीज अंसारी
झूठ का लेकर सहारा जो उबर जाऊंगा
मौत आने से नहीं शर्म से मर जाऊंगा
सख्त* जां हो गया तूफान से टकराने पर
लोग समझते थे कि तिनकों सा बिखर जाऊंगा
है यकीं** लौट के आऊंगा मैं फतेह*** बनकर
सर हथेली पे लिए अपना जिधर जाऊंगा
सिर्फ जर्रा**** हूं अगर देखिए मेरी जानिब
सारी दुनिया में मगर रोशनी कर जाऊंगा
कुछ निशानात# हैं राहों में तो जारी है सफर
ये निशानात न होंगे तो किधर जाऊंगा
जब तलक मुझमें रवानी है@ तो दरिया हूं 'अजीज'
मैं समन्दर में जो उतरूंगा तो मर जाऊंगा
*मजबूत ** विश्वास ***विजयी ****कण #चिह्न @बहाव
- अजीज अंसारी
बस इकरार नहीं करता..............संकलन....सोनू अग्रवाल
वो अब मेरी किसी बात पर इनकार नहीं करता
प्यार उसे भी है बस इकरार नहीं करता....
ख्यालो में उसने कहीं हमको ही बसा रखा है...
फिर भी मोहब्बत का वो हमसे इजहार नहीं करता
झुका लेता है नजरे वो देख कर हमको....
महफिल में ऐसा तो कोई फनकार नहीं करता
आँखों की नमी भी दिल तक उतर आती है उस पल
खफा होकर भी जब वो मुझसे तकरार नहीं करता.
--संकलन....सोनू अग्रवाल
Tuesday, April 2, 2013
फिर नदी के पास लेकर आ गयी...........अन्सार कम्बरी
फिर नदी के पास लेकर आ गयी
मैं न आता प्यास लेकर आ गयी|
मैं न आता प्यास लेकर आ गयी|
जागती है प्यास तो सोती नहीं
और अपनी तीव्रता खोती नहीं
और अपनी तीव्रता खोती नहीं
वो तपोवन हो के राजा का महल
प्यास की सीमा कोई होती नहीं
हो गये लाचार विश्वामित्र भी
मेनका मधुमास लेकर आ गयी|
तृप्ति तो केवल क्षणिक आभास है
और फिर संत्रास ही संत्रास है
शब्द-बेधी बाण, दशरथ की व्यथा
कैकेयी के मोह का इतिहास है
इक ज़रा सी भूल यूँ शापित हुई
राम का वनवास लेकर आ गयी|
प्यास कोई चीज़ मामूली नहीं
प्राण ले लेती है पर सूली नहीं
यातनायें जो मिली हैं प्यास से
आज तक दुनिया उसे भूली नहीं
फिर लबों पर कर्बला की दास्ताँ
प्यास का इतिहास लेकर आ गयी|
प्यास की सीमा कोई होती नहीं
हो गये लाचार विश्वामित्र भी
मेनका मधुमास लेकर आ गयी|
तृप्ति तो केवल क्षणिक आभास है
और फिर संत्रास ही संत्रास है
शब्द-बेधी बाण, दशरथ की व्यथा
कैकेयी के मोह का इतिहास है
इक ज़रा सी भूल यूँ शापित हुई
राम का वनवास लेकर आ गयी|
प्यास कोई चीज़ मामूली नहीं
प्राण ले लेती है पर सूली नहीं
यातनायें जो मिली हैं प्यास से
आज तक दुनिया उसे भूली नहीं
फिर लबों पर कर्बला की दास्ताँ
प्यास का इतिहास लेकर आ गयी|
--अन्सार कम्बरी