यूँ तो ज़िंदगी के सारे सबक जुबानी याद हैं मुझे
जब तुम सामने आते हो तो सब भूल जाता हूँ मैं
तुमसे जुदा होकर यूँ बिखर गयी मैं
समेटने की न ताक़त न चाहत बाक़ी
तुमने चूमा था जब पेशानी को मेरी
रंगत होठों की लवों तक उतर आयी थी
बारीक़ सा फ़ासला तफ़सील से निभाया उसने
जो मैंने नहीं चाहा था वही कर दिखाया उसने
ज़िंदगी के वो तमाम पहलू जिनमें तुम शामिल नहीं हो
मैं अलग हो गयी उनसे या उन्हें खुद से जुदा कर दिया
निधि टण्डन की दो लाइने....फेसबुक से
बहन निधि की दो लाईने भी होश उड़ा देती है कभी-कभी
बहन निधि की दो लाईने भी होश उड़ा देती है कभी-कभी
वाह लाजवाब रचना |
ReplyDeleteतुमने चूमा था जब पेशानी को मेरी
रंगत होठों की लवों तक उतर आयी थी..
बहुत उम्दा प्रस्तुति |
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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ahsaso ko jivant karti prastuti
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteआज ही ख़याल आया था कि निधी अपनी दो लाइनें ब्लॉग में पोस्ट क्यूँ नहीं करतीं....
शुक्रिया यशोदा.
सस्नेह
अनु
waaaaaaaaaah kya kheni waaah !!!!!
ReplyDeleteवाह्ह्ह्हह्ह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
नवरात्रों और नवसम्वतसर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ...!
नवरात्रों और नवसम्वतसर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ.... !!
ReplyDeleteज़िंदगी के वो तमाम पहलू जिनमें तुम शामिल नहीं हो
मैं अलग हो गयी उनसे या उन्हें खुद से जुदा कर दिया .......
प्यार में पग कर जोगन बन जाना इसी को कहते हैं .....।
उम्दा अभिव्यक्ति !!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शेर हैं .....रोज पोस्ट होने वाली इन दो लाइनों के बिना सुबहें अधूरी लगती हैं :)
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