Friday, April 26, 2013

ए 'रेखा' गमों की मुहब्बत तो देख.........रेखा अग्रवाल


मेरे हाल पर रहम खाते हुए,
वो आये तो हैं मुस्कुराते हुए !

जहां दिल को जाना था ए साथिया,
वहीं ले गया मुजको जाते हुए !

ये तूफान कितना मददगार है,
चला है सफीना बढाते हुए !

मुझे याद फिर बिजलियां आ गई,
नया आशियाना बनाते हुए !

जमाने की क्यूं अक्ल मारी गई,
मेरे दिल का सिक्का भुनाते हुए !

ये हालात ने क्या असर कर दिया,
जो मैं रो पड़ी मुस्कुराते हुए !

ए 'रेखा' गमों की मुहब्बत तो देख,
करीब आ गए दूर जाते हुए !



--रेखा अग्रवाल 

ग़ज़लः सौजन्य श्री अशोक खाचर

3 comments:

  1. बहुत सुंदर ग़ज़ल......

    ReplyDelete
  2. बहुत उम्दा |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete