संसार क्षेत्र की यात्रा करने
चली आत्मा
रूप अनेक धार।
पथ में जिसके कांटे अधिक हैं
फूल हैं केवल चार।
कुछ रूप हैं उसके बलवान
दुर्बल को नित मिली असफलता
बलवान को पहचान।
सभी रूपों में बढ़कर है
मानव रूप महान।
मानव है सर्वश्रेष्ठ रचना
उस ईश की
रखें यह सदा ध्यान।
शरीररूपी विश्राम स्थलों पर
डेरा अपना डाल
नव प्रभात हो चला जाएगा
आत्मा यात्री महान।
- डॉ. परमजीत ओबराय
बहुत सुंदर रचना....मानव है सर्वश्रेठ रचना .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट रचना.
ReplyDeleteKripya char phool ka vivran de Aatma ki yatra me, Manav hi he sarvshresht toh samjh aa gyi.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeletebhut hi sundar waaaah waaah
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .....
ReplyDeleteआत्मा की यात्रा तो सतत चलती ही रहनी है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, सार्थक रचना !
सादर !