नाम से भी मेरे नफ़रत है उसे
मुझसे इस दर्जा मुहब्बत है उसे
मुझसे इस दर्जा मुहब्बत है उसे
... मुझको जीने भी नहीं देता वो
मेरे मरने की भी हसरत है उसे
रूठ जाऊँ तो मानता है बहुत
फिर भी तड़पाने की आदत है उसे
उसको देखूँ मैं बंद आँखों से
गैरमुमकिन सी ये चाहत है उसे
जब भी चाहे वो सता लेता है
ज़ुल्म ढाने की इजाज़त है उसे
वो 'मनु' पे है जाँ-निसार बहुत
और 'मनु' से ही हिक़ारत है उसे
-मनु भारद्वाज "मनु"
brhatareen, ya yun kah le "JAB VO CHAHE PAS BULA LETA HAI, MUJHE JI BHAR KE SATA LETA HAI , USKA NAFARAT BHI PYAR LAGTA HAI MUJHE,ROOTH JAUN GR TO PAL BHAR ME MANA LETA HAi ...जब भी चाहे वो सता लेता है
ReplyDeleteज़ुल्म ढाने की इजाज़त है उसे
वो 'मनु' पे है जाँ-निसार बहुत
और 'मनु' से ही हिक़ारत है उसे
kya kheni !!! behtirn.....or matla to lazvab hai......
ReplyDeletebahut khoobsurat manu ji ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि क़ी चर्चा सोमवार [22.4.2013] के 'एक गुज़ारिश चर्चामंच' 1222 पर लिंक क़ी गई है,अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए पधारे आपका स्वागत है |
ReplyDeleteसूचनार्थ..
आभार
ReplyDeleteभाई कुलदीप जी
सुन्दर रचना |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत भाव पूर्ण ग़ज़ल है मनु जी -सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post बे-शरम दरिंदें !
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वाह बहुत खूब
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