जब करते थे यारों के बीच ठिठौली
वो वक्त गुजरे बहुत दिन हो गए!
किसी अपने को तलाश करते हुए,
एक अनजान शहर में आए-
बहुत दिन हो गए!
न मंजिल का पता है और न ही रास्ते की खबर,
फिर भी अनजानी राह पर चलते हुए-
बहुत दिन हो गए!
भीड़ तो बहुत देखी हमने इस जमाने में,
मगर इस भीड़ में कोई अपना देखे-
बहुत दिन हो गए!
जब मिलेगा कहीं वो हमें तो,
पूछेंगे यार कहां थे तुमसे मिले-
बहुत दिन हो गए!
और जो करते थे साथ निभाने की बातें,
उनसे बिछड़े 'नाना' को बहुत दिन हो गए!!
-एमएल मोदी (नाना)
वाह ! ऐसी रचना पढ़े बहुत दिन हो गए। सुन्दर !रचना ,आभार। 'एकलव्य'
ReplyDeleteबढ़िया।
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर रचना ! बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद जी
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