क्या हादसा ये अजब हो गया
बूढ़े हुए, इश्क़ रब हो गया
चाहत का पैग़ाम तब है मिला
पूरा सभी शौक जब हो गया
हम आ गए ज़ुल्फ़ की क़ैद में
मिलना ही उनसे गजब हो गया
रहते थे हमसे बहुत दूर वो
मिलने का ये शौक कब हो गया
हमको मिला ना ख़ुदा, ना सनम
पूरा ख़लिश वक़्त अब हो गया.
-महेश चन्द्र गुप्त ‘ख़लिश’
सुन्दर रचना ! आदरणीय, आभार।
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