मुखर हो जाएं जहाँ वाचाल मौन ।
तस्वीरें वह भला न कुरेदे कौन ॥
पन्ना पलटे चेहरे का हर भाव ।
देकर दगा कभी प्रीत कभी दाँव ॥
जीवन ज्यों हो मुखौटों की पुस्तक ।
मृदुल कभी नीरसता की है दस्तक ॥
अंतर्मन का है ..प्रतिबिम्ब दहकता ।
जग संग्राहलय ..यह हँसता गाता ।
दंश देते ..अवसाद विषाद.. जड़ित ।
हैं शान्ति अभिलाषी मन गहन गणित॥
-अलका गुप्ता 'भारती'
वाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 16 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteबेहतरीन !!
ReplyDeleteलाजवाब सृजन
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