भले ही नागफनी सा दिखता हूँ.
ग़ज़ल बड़ी मखमली लिखता हूँ..
क़दर नहीं, पर हासिल भी नहीं.
वैसे, एक मुस्कान में बिकता हूँ..
फूलों की खबर रूहों को देनी है
पवन हूँ, एक जगह कहाँ टिकता हूँ
कामयाब बुर्ज पर परचम तुम्हारा
मैं शिकस्तों के गांव में छिपता हूँ
यकजां आईने में अक्स बिखरा था
हुई जो किरचें, तो साफ दिखता हूँ
-विनय के. जोशी..
वाह। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 17 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDelete